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बंधाधिकार गाथाओं में दिया जा रहा है। गाथाओं का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
जह फलिहमणी सुद्धो ण सयं परिणमदि रागामादीहिं। रंगिज्जदि अण्णेहिं दु सो रत्तादीहिं दव्वेहिं ।।२७८।। एवं णाणी सुद्धो ण सयं परिणमदि रागामादीहिं। राइज्जदि अण्णेहिं दु सो रागादीहिं दोसेहिं ।।२७९।।
यथा स्फटिकमणिः शुद्धो न स्वयं परिणमते रागाद्यैः । रज्यतेऽन्यैस्तु स रक्तादिभिर्द्रव्यैः ।।२७८।। एवं ज्ञानी शुद्धो न स्वयं परिणमते रागाद्यैः।
रज्यतेऽन्यैस्तु स रागादिभिर्दोषैः ।।२७९।। यथा खलु केवल: स्फटिकोपल:, परिणामस्वभावत्वे सत्यपि, स्वस्य शुद्धस्वभावत्वेन रागादिनिमित्तत्वाभावात् रागादिभि: स्वयं न परिणमते, परद्रव्येणैव स्वयं रागादिभावापन्नतया स्वस्य रागादिनिमित्तभूतेन, शुद्धस्वभावात्प्रच्यवमान एव, रागादिभिः परिणम्यते। ____ तथा केवलः किलात्मा, परिणामस्वभावत्वे सत्यपि, स्वस्य शुद्धस्वभावत्वेन रागादिनिमित्तत्वाभावात् रागादिभिः स्वयं न परिणमते, परद्रव्येणैव स्वयं रागादिभावापन्नतया स्वस्य रागादिनिमित्तभूतेन,शुद्धस्वभावात्प्रच्यवमान एव, रागादिभिः परिणम्यते। इति तावद्वस्तुस्वभावः।।२७८-२७९ ।।
(हरिगीत ) ज्योंलालिमामय स्वयंपरिणत नहीं होता फटिकमणि। पर लालिमायुत द्रव्य के संयोग से हो लाल वह ।।२७८।। त्यों ज्ञानिजन रागादिमय परिणत न होते स्वयं ही।
रागादि के ही उदय से वे किये जाते रागमय ।।२७९।। जिसप्रकार स्फटिकमणि शुद्ध होने से रागादिरूप से, लालिमारूप से अपने आप परिणमित नहीं होता; परन्तु अन्य लालिमादि युक्त द्रव्यों से वह लाल किया जाता है।
उसीप्रकार ज्ञानी अर्थात् आत्मा शुद्ध होने से अपने आप रागादिरूप नहीं परिणमता; परन्तु अन्य रागादि दोषों से वह रागादि रूप किया जाता है। इन गाथाओं का भाव आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
"जिसप्रकार स्वयं परिणमन स्वभाववाला होने पर भी स्फटिकमणि अपने शुद्धस्वभावत्व के कारण स्वयं में रागादि का निमित्तत्व न होने से अपने आप लालिमा आदि रूप परिणमित नहीं होता; अपितु उस परद्रव्य के द्वारा ही शुद्धस्वभाव से च्युत होता हुआ लालिमा आदि रूप परिणमित किया जाता है; जो परद्रव्य स्वयं लालिमा आदि रूप होने से स्फटिकमणि की लालिमा में निमित्त होता है।
उसीप्रकार स्वयं परिणमन स्वभाववाला होने पर भी यह शुद्ध आत्मा अपने शुद्धस्वभाव के कारण स्वयं में रागादि का निमित्तत्व न होने से अपने आप रागादिरूप परिणमित नहीं होता;