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________________ २८६ समयसार दुअभावे णियमा जायदि णाणिस्स आसवणिरोहो । आसवभावेण विणा जायदि कम्मस्स वि णिरोहो । । १९१ । । कम्मस्साभावेण य णोकम्माणं पि जायदि णिरोहो । णोकम्मणिरोहेण य संसारणिरोहणं होदि । । १९२ ।। तेषां हेतवो भणिता अध्यवसानानि सर्वदर्शिभिः । मिथ्यात्वमज्ञानमविरतभावश्च योगश्च ।। १९० ।। हेत्वभावे नियमाज्जायते ज्ञानिन आस्रवनिरोधः । आस्रवभावेन विना जायते कर्मणोऽपि निरोधः । । १९१ ।। कर्मणोऽभावेन च नोकर्मणामपि जायते निरोधः । नोकर्मनिरोधेन च संसारनिरोधनं भवति । । १९२ । । हरिगीत ) बंध के कारण कहे हैं भाव अध्यवसान ही । मिथ्यात्व अर अज्ञान अविरत - भाव एवं योग भी । । १९० ।। इनके बिना है आस्रवों का रोध सम्यग्ज्ञानि के । अर आस्रवों के रोध से ही कर्म का भी रोध है ।।१९१ । । कर्म के अवरोध से नोकर्म का अवरोध हो । नोकर्म के अवरोध से संसार का अवरोध हो । । १९२ ।। पूर्वकथित मोह - राग-द्वेष रूप आस्रवभावों के हेतु मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरतभाव और योग - ये चार अध्यवसान हैं - ऐसा सर्वदर्शी भगवानों ने कहा है । तुओं का अभाव होने से ज्ञानियों के नियम से आस्रवभावों का निरोध होता है और आस्रवभावों के अभाव से कर्मों का भी निरोध होता है । कर्म के निरोध से नोकर्मों का निरोध होता है और नोकर्मों के निरोध से संसार का निरोध होता है। इसप्रकार इन गाथाओं में यही कहा गया है कि मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरतभाव और योग - ये चार अध्यवसान मोह-राग-द्वेषरूप आस्रवभावों के हेतु हैं । चूँकि ये अध्यवसान ज्ञानियों के होते नहीं; इसकारण ज्ञानियों के रागादिभावरूप आस्रवभावों का निरोध होता है। रागादिरूप भावास्रवों के निरोध से कर्मरूप द्रव्यास्रवों का निरोध हो जाता है। जब द्रव्यकर्म और भावकर्म नहीं होते तो फिर शरीरादि नोकर्म कैसे रह सकते हैं ? जब शरीरादि का संयोग ही नहीं रहा तो संसार का भी अभाव हो जाता है। आस्रवों के निरोध का यही क्रम है । आस्रवों का निरोध ही संवर है । इसप्रकार संवर संसार के अभाव का कारण है, मोक्ष का कारण है।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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