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________________ ५. आचार्य जयसेन कृत तात्पर्यवृत्ति में समागत गाथायें, जो आत्मख्याति में नहीं हैं, वे भी इसमें शामिल की गई हैं, उन गाथाओं का गद्य एवं पद्यानुवाद के साथ-साथ तात्पर्यवृत्ति टीका का भाव भी इसमें दिया गया है। हिन्दी-गुजराती-मराठी-कन्नड़ भाषा में प्राप्त आत्मख्याति की अन्य टीकाओं में उक्त गाथायें उपलब्ध नहीं हैं। ६. इस ग्रन्थ की ऐसी कोई हिन्दी, गुजराती, मराठी और कन्नड़ टीका उपलब्ध नहीं है, जिसमें टीकाकार गाथाओं और कलशों का टीकाकार द्वारा किया गया पद्यानुवाद दिया गया हो; पर इस टीका में टीकाकार द्वारा ही किया गया गाथाओं और कलशों का हिन्दी पद्यानुवाद दिया गया है। ७.४७ शक्तियों का विवरण जितना स्पष्ट इस कृति में दिया गया है, उतना इसके पहले की टीकाओं में उपलब्ध नहीं होता। ८. महत्त्वपूर्ण गाथाओं का भाव विस्तार से सोदाहरण समझाया गया है। ९. कठिन विषय को स्पष्ट करने के लिए हिन्दी टीकाकार ने अनेक स्थान पर अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाने का सफल प्रयास किया है। १०. जिन-अध्यात्म का प्राथमिक अध्ययन करनेवाले को भी इस कृति के स्वाध्याय से अध्यात्म के मूल विषय का ज्ञान सहज हो जायेगा। ११. समयसार ३२०वीं एवं ४१४ गाथा की तात्पर्यवृत्ति टीका के उपरान्त दोनों प्रकरणों के उपसंहाररूप आत्मानुभूति संबंधी जो सामग्री दी है; वह भी इस टीका में सरल हिन्दी भाषा में दी गई है, जो आत्मख्याति की अन्य हिन्दी टीकाओं में उपलब्ध नहीं होती। १२. प्रत्येक अधिकार के आरंभ में उसके पूर्व समागत विषयवस्तु का संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण इस कृति की अपनी अलग विशेषता है; जिसके कारण पाठकों को विषयवस्तु का क्रमिक विकास और तारतम्य सहज ही स्पष्ट होता जाता है। १३. सरलता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, जिसके कारण साधारण से साधारण अनभ्यासी पाठकों का भी प्रवेश समयसार और आत्मख्याति टीका में सहज हो जायेगा। १४. दातारों के सहयोग से लागत मूल्य से लगभग आधे मूल्य में जितनी चाहे, उतनी संख्या में सर्वत्र सहज उपलब्ध होना भी एक ऐसा कारण है कि जिसके कारण यह कृति प्रत्येक मंदिर में प्रतिदिन के स्वाध्याय में रखी जावेगी और न केवल वक्ता के हाथ में, अपितु प्रत्येक श्रोता के हाथ में भी यह उपलब्ध रहेगी। इतनी सशक्त, सरल, सुबोध और सार्थक टीका की रचना के लिए हिन्दी टीकाकार डॉ. भारिल्ल; सुन्दरतम प्रकाशन के लिए प्रकाशन विभाग के प्रभारी अखिल बंसल; शुद्ध मुद्रण के लिए इसका प्रूफ देखनेवाले संजय शास्त्री बड़ामलरा; कम्पोजिंग और सेटिंग के लिए दिनेश शास्त्री बड़ामलहरा और लगभग आधी कीमत में उपलब्ध करानेवाले आर्थिक सहयोगियों के हम हृदय से आभारी हैं और सभी को कोटिशः धन्यवाद देते हैं।" जिनवाणी का सर्वस्व समयसार का हार्द समझने में यह कृति अत्यन्त उपयोगी है। हमें विश्वास है कि पाठकगण इस कृति का भरपूर उपयोग, समयसार के हार्द ज्ञायकभाव को समझने में अवश्य करेंगे। १० अगस्त २००६ ई. - ब्र. यशपाल जैन एम.ए. प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर (राज.)
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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