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________________ प्रकाशकीय : द्वितीय संस्करण डॉ. भारिल्लकृत ज्ञायकभावप्रबोधिनी टीका सहित समयसार का दूसरा संस्करण मात्र ८० दिन के भीतर ही प्रकाशित करते हुए हमें अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। २ हजार प्रतियों का प्रथम संस्करण हाथों-हाथ समाप्त हो गया। जो लोग ऐसा कहते व मानते हैं कि आज शास्त्रों की आवश्यकता नहीं है। कोई पढ़ता तो है नहीं; यों ही छपाये जाते हैं। उनसे हम कहना चाहते हैं कि आपका यह कहना डॉक्टर भारिल्ल के साहित्य के संदर्भ में उचित नहीं है। इस कृति के संदर्भ में प्रथम संस्करण के प्रकाशकीय में जो बात कही गई है, उसका महत्त्वपूर्ण अंश इसप्रकार है - "डॉ. हुकमचन्द भारिल्लकृत समयसार अनुशीलन पढ़कर मुझे विचार आया कि यदि डॉक्टर भारिल्ल ग्रंथाधिराज समयसार की सरल-सुबोध टीका हिन्दी भाषा में लिख दें तो बहुत लोगों पर उपकार हो सकता है। मैंने उनसे अनुरोध किया कि लगभग ४० वर्षों से आप समयसार के लिए ही समर्पित हैं। उस पर हजारों प्रवचन तो किये ही हैं, साथ में २२५० पेज का अनुशीलन भी लिखा है। उसके पहले प्रवचनरत्नाकर के ५००० पृष्ठों का संपादन भी आपने किया है। इसके अतिरिक्त ४०० पृष्ठों का समयसार का सार भी प्रस्तुत किया है। अनेक वर्ष पूर्व ‘सार समयसार' नामक छोटी कृति भी लिखी थी। इसप्रकार मूल ग्रंथ समयसार और उसकी आचार्य अमृतचन्द्रकृत आत्मख्याति संस्कृत टीका पर आपका पूरा अधिकार हो गया है। इस समय और कोई ऐसा विद्वान दिखाई नहीं देता कि जो समयसार पर आपके समान अधिकार रखता हो। आपकी हिन्दी भाषा भी सरल-सुबोध है, लेखन शैली भी आकर्षक एवं सामान्यजन को बुद्धिगम्य है। इसलिए आप मूल ग्रंथ समयसार और आत्मख्याति नामक संस्कृत टीका के ऊपर हिन्दी भाषा में टीका अवश्य लिखें। ____ मुझे प्रसन्नता है कि डॉ. भारिल्ल ने मेरे द्वारा बार-बार अनुरोध किये जाने पर समयसार ग्रंथाधिराज पर हिन्दी टीका लिखना स्वीकार कर लिया; परिणामस्वरूप आज यह ज्ञायकभावप्रबोधिनी हिन्दी टीका आपके करकमलों में प्रस्तुत है। इस टीका में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं; जो इसे अन्य टीकाओं से पृथक् स्थापित करती हैं और उन टीकाओं के रहते हुए भी इसकी आवश्यकता और उपयोगिता को रेखांकित करती हैं। वे विशेषताएँ इसप्रकार हैं - १. भाषा सरल, सहज, सुलभ, स्पष्ट भाववाही है। २. संस्कृत टीका का अनुवाद भी सहजगम्य है। ३. गाथा एवं कलशों का पद्यानुवाद भी सरस है, पद्य भी गद्य जैसा ही है, अन्वय लगाने की आवश्यकता नहीं है। ४. टीका, गाथा एवं कलशों का भाव व्यक्त करनेवाला हिन्दी टीकाकार का विशेष स्पष्टीकरण मूल ग्रंथ के प्राणभूत विषय को स्पष्ट करने में पूर्णत: समर्थ है।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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