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________________ आस्रवाधिकार अथ प्रविशत्यास्रवः। (द्रुतविलंबित) अथ महामदनिर्भरमंथरं समररंगपरागतमास्रवम् । अयमुदारगभीरमहोदयो जयति दुर्जयबोधधनुर्धरः ।।११३।। मंगलाचरण (दोहा) पण्य-पाप के भाव सब.हैं आस्रव दःखकार। यह आतम आस्रव रहित, परम धरम सुखकार ।। इस समयसार ग्रन्थाधिराज में सर्वप्रथम जीवाजीवाधिकार में दृष्टि के विषयभूत त्रिकाली ध्रुव निज भगवान आत्मा को वर्णादि से लेकर गुणस्थानपर्यन्त २९ प्रकार के सभी भावों से भिन्न बताया है और उनके स्वामित्व से भी इन्कार किया गया है, उनसे एकत्व-ममत्व छुड़ाया गया है। उसके बाद कर्ताकर्माधिकार में उन्हीं भावों के कर्तृत्व और भोक्तृत्व से इन्कार किया गया है, उनके कर्तृत्व-भोक्तृत्व को छुड़ाया गया है। उसके बाद पुण्यपापाधिकार में पुण्य और पाप भावों में एकता स्थापित की गई है; क्योंकि यह अज्ञानी आत्मा निज भगवान आत्मा से भिन्न शुभाशुभभावरूप पुण्य-पाप भावों को एक समान ही हेय न मानकर पुण्यभावों को उपादेय मान लेता है, उन्हें धर्म समझने लगता है, उन्हें मुक्ति का मार्ग मानने लगता है। अब इस आस्रवाधिकार में उसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा जा रहा है कि पुण्य और पाप दोनों ही भाव आस्रवभाव हैं; अत: बंध के कारण हैं, मुक्ति के कारण नहीं; उन्हें मुक्ति का कारण मानना अज्ञान है। इस अधिकार की टीका आचार्य अमृतचन्द्र छोटे से वाक्य से आरंभ करते हैं, जो इसप्रकार है - 'अब आस्रव प्रवेश करता है।' तात्पर्य यह है कि नाटक समयसार के रंगमंच पर अब आस्रव प्रवेश करता है। उक्त आस्रवभाव के स्वांग को पहिचान लेनेवाले, आस्रवभाव को जीत लेनेवाले ज्ञानरूपी धनुर्धर योद्धा की जय-जयकार करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र इस अधिकार का मंगलाचरण करते हैं। मूल कलश का पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत ) सारे जगत को मथ रहा उन्मत्त आस्रवभाव यह। समरांगण में समागत मदमत्त आस्रवभाव यह ।। मर्दन किया रणभूमि में इस भाव को जिस ज्ञान ने। वह धीर है गंभीर है हम रमें नित उस ज्ञान में ।।११३।। समरांगण में समागत और महामद से मदोन्मत्त इस आस्रवभाव को, महान उदय और महान उदारता है जिसमें - ऐसा गंभीर ज्ञानरूपी धनुर्धर योद्धा सहजभाव से जीत लेता है।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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