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________________ कर्ताकर्माधिकार २०७ नयपक्ष से अतिक्रान्त जो वह ही समय का सार है।।१४२।। जीव में कर्म बद्ध या अबद्ध हैं - इसप्रकार तो नय पक्ष जानो, किन्तु जो पक्षातिक्रान्त कहलाता है, समयसार तो वह है, शुद्धात्मा तो वह है।। उक्त गाथा का भाव आचार्य अमृतचन्द्र आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं - "जीव में कर्म बद्ध है अथवा जीव में कर्म अबद्ध है - इसप्रकार के दोनों विकल्प नयपक्ष ही हैं। जो व्यक्ति इन दोनों नयपक्षों का उल्लंघन कर देता है, अतिक्रम कर देता है, दोनों को छोड़ देता है; वह समस्त विकल्पों का अतिक्रम करके स्वयं निर्विकल्प होकर, एक विज्ञानघन स्वभावरूप होकर साक्षात् समयसार होता है। तत्र यस्तावज्जीवे बद्धं कर्मेति विकल्पयति स जीवेऽबद्ध कर्मेति एकं पक्षमतिक्रामन्नपि न विकल्पमतिक्रामति । यस्तु जीवेऽबद्धं कर्मेति विकल्पयति सोऽपिजीवे बद्धं कर्मेत्येकं पक्षमतिक्रामन्नपिन विकल्पमतिक्रामति । यः पुनर्जीवे बद्धमबद्धं च कर्मेति विकल्पयति स तु तं द्वितयमपि पक्षमनतिक्रामन् न विकल्पमतिक्रामति। ततो य एव समस्तनयपक्षमतिक्रामति स एव समस्तं विकल्पमतिक्रामति । य एव समस्तं विकल्पमतिक्रामति स एव समयसारं विंदति ।।१४२ ।। यद्येवं तर्हि को हि नाम नयपक्षसंन्यासभावानां न नाटयति ? (उपेन्द्रवज्रा) य एव मुक्त्वा नयपक्षपातं स्वरूपगुप्ता निवसंति नित्यम्। विकल्पजालच्युतशांतचित्तास्त एव साक्षादमृतं पिबंति ।।६९।। जो व्यक्ति 'जीव में कर्म बद्ध है' - ऐसा विकल्प करता है, वह 'जीव में कर्म अबद्ध है' - ऐसे एक पक्ष का अतिक्रम करता हुआ भी विकल्प का अतिक्रम नहीं करता और जो व्यक्ति 'जीव में कर्म अबद्ध है' - ऐसा विकल्प करता है, वह भी ‘जीव में कर्म बद्ध है' - ऐसे एक पक्ष का अतिक्रम करता हुआ भी विकल्प का अतिक्रम नहीं करता तथा जो व्यक्ति यह विकल्प करता है कि 'जीव में कर्म बद्ध भी है और अबद्ध भी है' - वह दोनों पक्षों का अतिक्रम न करता हुआ विकल्प का अतिक्रम नहीं करता। इसलिए जो व्यक्ति समस्त नयपक्षों का अतिक्रम करता है, वही समस्त विकल्पों का अतिक्रम करता है और जो समस्त विकल्पों का अतिक्रम करता है, वही समयसार को प्राप्त करता है, उसका साक्षात् अनुभव करता है।" गाथा में तो मात्र दो नयपक्षों की ही चर्चा आई है; किन्तु टीका में तीसरे प्रमाणपक्ष को भी रखा गया है, जिसमें कहा गया है कि जो ऐसा विकल्प करता है कि आत्मा बद्ध भी है और अबद्ध भी है, वह भी विकल्प का अतिक्रमण नहीं करता। इसप्रकार इसमें नय और प्रमाण - दोनों के पक्ष का निषेध किया गया है। कहा गया है कि वस्तु नयातीत ही नहीं, प्रमाणातीत भी है; नयपक्ष के विकल्प से भी पार है और प्रमाण के विकल्प से भी पार है, सबप्रकार के विकल्पों से पार है। ___ इसप्रकार हम देखते हैं कि आत्मख्याति टीका में न केवल समस्त नयों के पक्षपात से पार होने की ही बात है; पर प्रमाण संबंधी विकल्पों से विराम लेने की भी बात है। टीका के अन्त में कहा गया है कि यदि ऐसा है तो नयपक्ष के त्याग की भावना को वास्तव में
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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