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कर्ताकर्माधिकार
२०५ इसीप्रकार 'पुद्गलद्रव्य का जीव के साथ ही कर्मरूप परिणाम होता है अर्थात् जीव और पुद्गल दोनों मिलकर कर्मरूप परिणमित होते हैं' - यदि ऐसा माना जाये तो पुद्गल और जीव दोनों ही कर्मत्व को प्राप्त हो जायें, परन्तु कर्मरूप परिणमित तो एक पुद्गलद्रव्य ही होता है, इसकारण जीवभाव के हेतु बिना ही कर्म पुद्गल का परिणाम है। इन गाथाओं का भाव आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
"कर्मपरिणाम के निमित्तभूत रागादि-अज्ञान परिणाम से परिणत जीव के साथ ही पुद्गलद्रव्य के कर्मरूप परिणाम होते हैं - यदि ऐसा तर्क उपस्थित किया जाये तो जिसप्रकार मिले हए चूना
वितर्कः, तदा पुद्गलद्रव्यजीवयोः सहभूतहरिद्रासधयोरिव द्वयोरपि कर्मपरिणामापत्तिः। अथ चैकस्यैव पुद्गलद्रव्यस्य भवति कर्मत्वपरिणाम:, ततो रागादिजीवाज्ञानपरिणामाद्धेतोः पृथग्भूत एव पुद्गलकर्मणः परिणामः ।
पुद्गलद्रव्यात्पृथग्भूत एव जीवस्य परिणामः - यदि जीवस्य सन्निमित्तभूतविपच्यमानपुद्गल-कर्मणा सहैव-सपाद्यज्ञानपरिणामो भवतीति वितर्कः, तदा जीवपुद्गलकर्मणो: सहभूतसुधा-हरिद्रयोरिव द्वयोरपि रागाद्यज्ञानपरिणामापत्तिः । अथ चैकस्यैव जीवस्य भवति रागाद्यज्ञान-परिणामः, ततः पुद्गलकर्मविपाकाद्धेतोः पृथग्भूतो एव जीवस्य परिणामः ।।१३७-१४०।। किमात्मनि बद्धस्पृष्टं किमबद्धस्पृष्टं कर्मेति नयविभागेनाह -
जीवे कम्मं बद्धं पुटुं चेदि ववहारणयभणिदं। सुद्धणयस्स दु जीवे अबद्धपुढे हवदि कम्मं ।।१४१।।
जीवे कर्म बद्धं स्पृष्टं चेति व्यवहारनयभणितम् ।
शुद्धनयस्य तु जीवे अबद्धस्पृष्टं भवति कर्म ।।१४१।। और हल्दी का लाल परिणाम होता है; उसीप्रकार पुद्गल और जीवद्रव्य - दोनों के कर्मरूप परिणाम की आपत्ति आ जाये, परन्तु कर्मत्वरूप परिणाम तो एक पुद्गलद्रव्य के ही होता है; इसलिए जीव के रागादि अज्ञान परिणाम जो कि कर्म के निमित्त हैं; उनसे भिन्न ही पुद्गलकर्म का परिणाम है।
रागादि अज्ञान परिणाम के निमित्तभूत उदयागत पुद्गलकर्म के साथ ही, दोनों एकत्र होकर ही रागादि अज्ञान परिणाम होता है - यदि ऐसा तर्क उपस्थित किया जाये तो जिसप्रकार मिले हुए चूना और हल्दी का लाल परिणाम होता है; उसीप्रकार जीव और पुद्गलकर्म दोनों के रागादि अज्ञान परिणाम की आपत्ति आ जाये; परन्तु रागादि अज्ञान परिणाम तो एक जीव के ही होता है; इसलिए पुद्गलकर्म का उदय जो कि जीव के रागादि अज्ञान परिणाम का निमित्त है, उससे भिन्न ही जीव का परिणाम है।"
अब नय विभाग से यह स्पष्ट करते हैं कि यह आत्मा कर्मबंधनों से बद्ध है या अबद्ध, कर्मों ने उसे स्पर्श किया है या नहीं?