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________________ कर्ताकर्माधिकार १९३ सहज ही यह नियम जानो वस्तु के परिणमन का ।।६४।। इसप्रकार पुद्गलद्रव्य की स्वभावभूत परिणामशक्ति निर्विघ्न सिद्ध हुई और उसके सिद्ध होने पर पुद्गलद्रव्य अपने जिस भाव को करता है, उसका वह पुद्गलद्रव्य ही कर्ता है। ११६ से १२० गाथा तक पाँच गाथाओं में जो बात पुद्गल के बारे में कही गई है, वही बात आगामी पाँच गाथाओं में जीव के बारे में कही जा रही है। जिनका पद्यानुवाद इसप्रकार है - जीवस्य परिणामित्वं साधयति - ण सयं बद्धो कम्मे ण सयं परिणमदि कोहमादीहिं। जइ एस तुज्झ जीवो अप्परिणामी तदा होदि ॥१२१।। अपरिणमंतम्हि सयं जीवे कोहादिएहिं भावेहिं। संसारस्स अभावो पसज्जदे संखसमओ वा ।।१२२।। पोग्गलकम्मं कोहो जीवं परिणामएदि कोहत्तं । तं सयमपरिणमंतं कहं णु परिणामयदि कोहो ।।१२३।। अह सयमप्पा परिणमदि कोहभावेण एस दे बुद्धी । कोहो परिणामयदे जीवं कोहत्तमिदि मिच्छा ।।१२४।। कोहुवजुत्तो कोहो माणवजुत्तो य माणमेवादा। माउवजुत्तो माया लोहुवजुत्तो हवदि लोहो ।।१२५।। न स्वयं बद्धः कर्मणि न स्वयं परिणमते क्रोधादिभिः। यद्येषः तव जीवोऽपरिणामी तदा भवति ।।१२१।। अपरिणममाने स्वयं जीवे क्रोधादिभिः भावैः। संसारस्याभाव: प्रसजति सांख्यसमयो वा ।।१२२।। पुदगलकर्म क्रोधो जीवं परिणामयति क्रोधत्वम् । तं स्वयमपरिणममानं कथं नु परिणामयति क्रोधः ।।१२३।। अथ स्वयमात्मा परिणमते क्रोधभावेन एषा ते बुद्धिः। क्रोधः परिणामयति जीवं क्रोधत्वमिति मिथ्या ।।१२४।। क्रोधोपयुक्तः क्रोधो मानोपयुक्तश्च मान एवात्मा। मायोपयुक्तो माया लोभोपयुक्तो भवति लोभः ।।१२५।। (हरिगीत ) यदि स्वयं ही ना बँधे अर क्रोधादिमय परिणत न हो। तो अपरिणामी सिद्ध होगा जीव तेरे मत विर्षे ।।१२१ ।। स्वयं ही क्रोधादि में यदि जीव ना हो परिणमित । तो सिद्ध होगा सांख्यमत संसार की हो नास्ति ।।१२२।। यदि परिणमावे कर्मजड क्रोधादि में इस जीव को।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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