________________
कर्ताकर्माधिकार
१७३ आन्दोलित हो जाता है; उसीप्रकार यह भगवान आत्मा भी स्वभाव से तो शान्त ही है, तथापि अज्ञान के कारण पर का कर्ता बन आकुलित होता है।
उक्त छन्द में अज्ञान के कारण क्या होता है ? - यह बताया गया है और अब आगे के छन्द में यह बताते हैं कि ज्ञान से क्या-क्या होता है। छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(वसन्ततिलका) ज्ञानाद्विवेचकतया तु परात्मनोर्यो जानाति हंस इव वा:पयसोर्विशेषम् । चैतन्यधातुमचलं स सदाधिरूढो जानीत एव हि करोति न किंचनापि ।।५९।।
(मन्दाक्रान्ता) ज्ञानादेव ज्वलनपयसोरौष्ण्यशैत्यव्यवस्था ज्ञानादेवोल्लसति लवणस्वादभेदव्युदासः । ज्ञानादेव स्वरसविकसन्नित्यचैतन्यधातो: क्रोधादेश्च प्रभवति भिदा भिंदती कर्तृभावम् ।।६०।।
(हरिगीतिका ) दूध जल में भेद जाने ज्ञान से बस हंस ज्यों। सद्ज्ञान से अपना-पराया भेद जाने जीव त्यों।। जानता तो है सभी करता नहीं कुछ आतमा।
चैतन्य में आरूढ़ नित ही यह अचल परमातमा ।।५९।। जिसप्रकार हंस दूध और पानी में अन्तर को जान लेता है; उसीप्रकार जो जीव ज्ञान के कारण विवेकवाला होने से आत्मा और पर-पदार्थों के भेद को जान लेता है; वह अचल चैतन्यधातु में सदा आरूढ़ होता हुआ, उसका आश्रय लेता हुआ मात्र जानता ही है, किंचित्मात्र भी कर्ता नहीं होता । तात्पर्य यह है कि स्व-पर के भेद को जाननेवाला ज्ञाता ही है, कर्ता नहीं। ___ हंस की चोंच में कुछ खटास रहती है। इसकारण जब वह दूध पीने के लिए उसमें अपनी चोंच डालता है तो दूध फट जाता है। इसतरह दूध अलग और पानी अलग हो जाता है। हंस की इस विशेषता के कारण साहित्यजगत में यह प्रसिद्ध है कि हंस में दूध और पानी को अलग-अलग कर देने की अपार क्षमता है। इसकारण हंस को क्षीर-नीर विवेकी भी कहा जाता है। जो व्यक्ति भलेबुरे की पहिचान करने में समर्थ होता है, असली-नकली का भेद समझने में चतुर होता है; उसे हंस की उपमा दी जाती है और उसे भी क्षीर-नीर विवेकी कहा जाता है।
यही कारण है कि यहाँ सम्यग्दृष्टि ज्ञानी धर्मात्मा को शरीरादि परपदार्थों से भिन्न अपनी आत्मा को जान लेने के कारण क्षीर-नीर विवेकी कहा जा रहा है, साथ में यह भी कहा जा रहा है कि ज्ञानी