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कर्ताकर्माधिकार
१७१ भ्रष्ट होता हुआ, बारम्बार अनेक विकल्पोंरूप परिणमित होता हुआ कर्ता प्रतिभासित होता है।
और जब यह आत्मा ज्ञानी होता है, तब ज्ञान के कारण पुद्गल कर्म और अपने स्वाद का भिन्न-भिन्न अनुभव होने के कारण भेदसंवेदनशक्ति से सम्पन्न होता हुआ यह जानता है कि 'अनादिनिधन, निरन्तर स्वाद में आनेवाला, समस्त अन्य रसों से विलक्षण अत्यन्त मधुर चैतन्य रसवाला आत्मा और कषायों में एकत्व का अध्यास अज्ञान के कारण होता है। कषायास्तैः सह यदेकत्वविकल्पकरणं तदज्ञानादित्येवं नानात्वेन परात्मानौ जानाति, ततोऽकृतकमेकं ज्ञानमेवाहं न पुन: कृतकोऽनेकः क्रोधादिरपीति क्रोधोऽहमित्यादिविकल्पमात्मनो मनागपि न करोति, ततः समस्तमपि कर्तृत्वमपास्यति, ततो नित्यमेवोदासीनावस्थो जानन् एवास्ते, ततो निर्विकल्पोऽकृतक एको विज्ञानघनो भूतोऽत्यंतमकर्ता प्रतिभाति ।।९७।।
(क्सन्ततिलका) अज्ञानतस्तु सतृणाभ्यवहारकारी ज्ञानं स्वयं किल भवन्नपि रज्यते यः। पीत्वा दधीक्षुमधुराम्लरसातिगृद्ध्या
गां दोग्धि दुग्धमिव नूनमसौ रसालम् ।।५७।। इसप्रकार पर को और स्वयं को भिन्न-भिन्न जानकर यह आत्मा 'मैं एक अकृत्रिम ज्ञान ही हँ, कृत्रिम क्रोधादि नहीं' - ऐसा जानता हआ 'मैं क्रोध हँ' - इत्यादि आत्मविकल्प किंचित् मात्र भी नहीं करता, इसकारण समस्त कर्तृत्व को छोड़ देता है; इसलिए सदा ही उदासीन होता हुआ मात्र जानता रहता है; अत: निर्विकल्प, अकृत्रिम, एक विज्ञानघन होता हुआ अत्यन्त अकर्ता प्रतिभासित होता है।"
'कर्तृत्व का मूल अज्ञान है' - इस बात को ८७वीं गाथा से ९७वीं गाथा तक विविध प्रकार से विविध युक्तियों द्वारा विस्तार से समझाया गया है।
अब उक्त ग्यारह गाथाओं के भव्य भवन पर आचार्य अमृतचन्द्र छह कलश चढ़ाते हैं, जिनमें मुख्यरूप से यही कहा जानेवाला है कि इस जगत में जो कुछ अप्रशस्त है, असुन्दर है; वह सब अज्ञान के कारण ही है और जो कुछ प्रशस्त, सुन्दर व सुखद होता है; उसका मूल कारण एकमात्र सद्ज्ञान है, सम्यग्ज्ञान है, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र है। उक्त कलशों में पहले कलश का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(कुण्डलिया) नाज सम्मिलित घास को, ज्यों खावे गजराज।
भिन्न स्वाद जाने नहीं, समझे मीठी घास ।। समझे मीठी घास नाज को ना पहिचाने । त्यों अज्ञानी जीव निजातम स्वाद न जाने ।। पुण्य-पाप में धार एकता शून्य हिया है।
अरे शिखरणी पी मानो गो-दूध पिया है।।५७।। निश्चय से स्वयं ज्ञानरूप होने पर भी अज्ञान के कारण जो जीव घास के साथ एकमेक हए