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________________ कर्ताकर्माधिकार १६१ होने से स्फटिक की स्वच्छता का काला, हरा और पीला - ऐसे तीनप्रकार का परिणामविकार दिखाई देता है। उसीप्रकार आत्मा के अनादि से मिथ्यादर्शन, अज्ञान और अविरति जिसका स्वभाव है - ऐसे अन्य वस्तुभूत मोह का संयोग होने से आत्मा के उपयोग का मिथ्यादर्शन, अज्ञान और अविरति - ऐसे तीनप्रकार का परिणामविकार समझना चाहिए।" अथात्मनस्त्रिविधपरिणामविकारस्य कर्तृत्वं दर्शयति - एदेसु य उवओगो तिविहो सुद्धो णिरंजणो भावो। जं सो करेदि भावं उवओगो तस्स सो कत्ता ।।९।। जं कुणदि भावमादा कत्ता सो होदि तस्स भावस्स । कम्मत्तं परिणमदे तम्हि सयं पोग्गलं दव्वं ।।९।। -एतेषु चोपयोगस्त्रिविधः शुद्धो निरंजनो भावः। यं स करोति भावमुपयोगस्तस्य स कर्ता ।।१०।। यं करोति भावमात्मा कर्ता स भवति तस्य भावस्य। कर्मत्वं परिणमते तस्मिन् स्वयं पुद्गलं द्रव्यम् ।।११।। अथैवमयमनादिवस्त्वंतरभूतमोहयुक्तत्वादात्मन्युत्प्लवमानेषु मिथ्यादर्शनाज्ञानाविरतिभावेषु उक्त सम्पूर्ण कथन का तात्पर्य यह है कि आत्मा का परसंग से मिथ्यात्वादि विकारीभावों रूप परिणमित होना पर्यायगत स्वभाव है और यह परिणमन अनादि से हो रहा है। यहाँ एक बात विशेष जानने योग्य है कि यदि एकबार इन मिथ्यात्वादि भावों का नाश हो जाये तो फिर इनकी उत्पत्ति नहीं होती; जैसा कि पिछले कलश में कहा भी गया है। __विगत गाथा में कहा गया है कि यह भगवान आत्मा स्वभाव से शुद्ध-बुद्ध होने पर भी अनादि से ही मोहयुक्त होने से मिथ्यात्व, अज्ञान और अविरति भावरूप परिणमित हो रहा है। अतः अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि इन मिथ्यात्वादिभावों का कर्ता कौन है ? इस प्रश्न के उत्तर में ये गाथायें लिखी गई हैं, जिनका पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत ) यद्यपी उपयोग तो नित ही निरंजन शुद्ध है। जिसरूप परिणत हो त्रिविध वह उसी का कर्ता बने ।।९०॥ आतम करे जिस भाव को उस भाव का कर्ता बने। बस स्वयं ही उस समय पुद्गल कर्मभावे परिणमे ।।११।। यद्यपि आत्मा का उपयोग शुद्ध और निरंजन भाव है; तथापि तीन प्रकार का होता हुआ वह उपयोग जिस भाव को स्वयं करता है, उस भाव का वह कर्ता होता है। आत्मा जिस भाव को करता है, उसका वह कर्ता होता है। उसके कर्ता होने पर पुद्गलद्रव्य अपने आप कर्मरूप परिणमित होता है।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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