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जीवाजीवाधिकार
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शारीरिक संज्ञाओं को सूत्र में जो जीव संज्ञा के रूप में कहा गया है, वह पर की प्रसिद्धि के कारण घी के घड़े की भाँति व्यवहार है और वह अप्रयोजनार्थ है ।
यथा हि कस्यचिदाजन्मप्रसिद्धैकघृतकुम्भस्य तदितरकुम्भानभिज्ञस्य प्रबोधनाय योऽयं घृतकुम्भ: समृण्मयो न घृतमय इति तत्प्रसिद्ध्या कुम्भे घृतकुम्भव्यवहार:, तथास्याज्ञानिनो लोकस्यासंसारप्रसिद्धाशुद्धजीवस्य शुद्धजीवानभिज्ञस्य प्रबोधनाय योऽयं वर्णादिमान् जीव: स ज्ञानमयो न वर्णादिमय इति तत्प्रसिद्ध्या जीवे वर्णादिमद्व्यवहारः ।। ६७ ।।
( अनुष्टुभ् ) घृतकुम्भाभिधानेऽपि कुम्भो घृतमयो न चेत् । जीवो वर्णादिमज्जीवजल्पनेऽपि न तन्मयः ।।४० ।।
जिसप्रकार किसी पुरुष को जन्म से ही मात्र घी का घड़ा ही प्रसिद्ध हो, उससे भिन्न अन्य घड़े को वह जानता ही न हो; ऐसे पुरुष को समझाने के लिए 'जो यह घी का घड़ा है, सो मिट्टीमय है, घीमय नहीं' - इसप्रकार घड़े में घी के घड़े का व्यवहार किया जाता है; क्योंकि उस पुरुष को घी का घड़ा ही प्रसिद्ध है ।
इसीप्रकार इस अज्ञानी लोक को अनादि-संसार से एक अशुद्धजीव ही प्रसिद्ध है, वह शुद्ध जीव को जानता ही नहीं है; उसे समझाने के लिए 'जो यह वर्णादिमान जीव है, वह ज्ञानमय है, वर्णादिमय नहीं' • इसप्रकार जीव में वर्णादिमयपने का व्यवहार किया गया है; क्योंकि अज्ञानी लोक को वर्णादिमान जीव ही प्रसिद्ध है ।"
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टीका में समागत कलश का पद्यानुवाद इसप्रकार है दोहा )
कहने से घी का घड़ा, घड़ा न घीमय होय ।
कहने से वर्णादिमय, जीव न तन्मय होय ॥ ४० ॥
जिसप्रकार 'घी का घड़ा' कहे जाने पर भी घड़ा घीमय नहीं हो जाता; उसीप्रकार 'वर्णादिमान जीव' कहे जाने पर भी जीव वर्णादिमय नहीं हो जाता ।
पुराने जमाने में घी भी मिट्टी के घड़ों में ही रखा जाता था । इसके लिए घड़े को विशेषरूप से तैयार किया जाता था। मिट्टी का होने से वह स्वयं बहुत घी सोख लेता था । अत: कीमती भी हो जाता था । उसमें पहले कुछ दिन पानी भरा जाता था। उसके बाद छाछ भरी जाती थी, जिससे वह छाछ की चिकनाई सोख ले। उसके बाद घी रखने के काम में लिया जाता था। ऐसे घड़े पीढ़ी-दरपीढ़ी चलते थे और उन्हें घर में घी का घड़ा के नाम से ही अभिहित किया जाता था। अत: बहुत से लोग उसे जन्म से ही घी के घड़े के रूप में ही जानते थे, घी के घड़े के नाम से ही जानते थे ।
यहाँ इसीप्रकार का घड़ा और उसे जन्म से ही घी के घड़े के रूप में जाननेवाले व्यक्ति को उदाहरण के रूप में लिया गया है।
यदि कोई ऐसा व्यक्ति यह मान ले कि जिसे घी का घड़ा कहा जाता है, वह घी से ही बना होगा,