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________________ १०६ ना वर्ग है ना वर्गणा अर कोई स्पर्धक नहीं । अर नहीं हैं अनुभाग के अध्यात्म के स्थान भी ।। ५२ ।। जीवस्य न संति कानिचिद्योगस्थानानि न बंधस्थानानि वा । नैव चोदयस्थानानि न मार्गणास्थानानि कानिचित् ।। ५३ ।। नो स्थितिबंधस्थानानि जीवस्य न संक्लेशस्थानानि वा । नैव विशुद्धिस्थानानि नो संयमलब्धिस्थानानि वा ।।५४।। नैव च जीवस्थानानि न गुणस्थानानि वा संति जीवस्य । ये त्वेते सर्वे पुद्गलद्रव्यस्य परिणामाः ।। ५५ ।। यः कृष्णो हरित: पीतो रक्तः श्वेतो वा वर्णः स सर्वोऽपि नास्ति जीवस्य पुद्गलद्रव्यपरिणाम योग के स्थान नहिं अर बंध के स्थान ना । उदय के स्थान नहिं अर मार्गणास्थान ना ।। ५३ ।। थितिबंध के स्थान नहिं संक्लेश के स्थान ना । संयमलब्धि के स्थान ना सुविशुद्धि के स्थान ना । । ५४ ।। जीव के स्थान नहिं गुणथान के स्थान ना । क्योंकि ये सब भाव पुद्गल द्रव्य के परिणाम हैं । । ५५ ।। समयसार जीव के वर्ण नहीं है, गन्ध भी नहीं है, रस और स्पर्श भी नहीं है; रूप भी नहीं है, शरीर भी नहीं है, संस्थान और संहनन भी नहीं है । जीव के राग नहीं है, द्वेष नहीं है और मोह भी विद्यमान नहीं है; प्रत्यय नहीं है, कर्म भी नहीं है और नोकर्म भी नहीं है । जीव के वर्ग नहीं है, वर्गणा नहीं है और कोई स्पर्धक भी नहीं है; अध्यात्मस्थान और अनुभागस्थान भी नहीं है। जीव के कोई योगस्थान नहीं है, बंधस्थान नहीं है, उदयस्थान नहीं है और कोई मार्गणास्थान भी नहीं है । जीव के स्थितिबंधस्थान नहीं है, संक्लेशस्थान भी नहीं है, विशुद्धिस्थान भी नहीं है और संयमलब्धिस्थान भी नहीं है। जीव के जीवस्थान नहीं है और गुणस्थान भी नहीं है; क्योंकि ये सभी परिणाम हैं। पुद्गलद्रव्य उक्त गाथाओं की टीका लिखते हुए आचार्य अमृतचन्द्र आत्मख्याति में उक्त २९ प्रकारों के भावों के भेद-प्रभेद गिनाते हुए भगवान आत्मा में उनके होने का निषेध करते हैं । जहाँ आवश्यकता समझते हैं; वहाँ उनका स्वरूप भी संक्षेप में स्पष्ट करते जाते हैं। सभी भावों के निषेध में वे एक ही तर्क देते हैं, एक ही युक्ति प्रस्तुत करते हैं कि ये पुद्गलद्रव्य के परिणाममय होने से अपनी अनुभूति से भिन्न हैं, अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा से भिन्न हैं । इन गाथाओं पर लिखी गई आत्मख्याति टीका का संक्षिप्त सार इसप्रकार है -
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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