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________________ जीवाजीवाधिकार माध्यम से भी गन्ध नहीं सूँघता; अत: अगन्ध है । पशमिकभावाभावाद्भावेन्द्रियावलंबेनागंधनात्, सकलसाधारणैकसंवेदनपरिणामस्वभावत्वात्केवलगंधवेदनापरिणामपन्नत्वेनागंधनात्, सकलज्ञेयज्ञायकतादात्म्यस्य निषेधाद्गन्धपरिच्छेदपरिणतत्वेऽपि स्वयं गंधरूपेणापरिणमनाच्चागंध: । १०१ तथा पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानस्पर्शगुणत्वात्, पुद्गलद्रव्यगुणेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमस्पर्शगुणत्वात्, परमार्थत: पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावाद्द्रव्येन्द्रियावष्टंभेनास्पर्शनात्,स्वभावतः क्षायोपशमिकभावाभावाद्भावेंद्रियावलंबेनास्पर्शनात्, सकलसाधारणैकसंवेदनपरिणामस्वभावत्वात्केवलस्पर्शवेदनापरिणामापन्नत्वेनास्पर्शनात्, सकलज्ञेयज्ञायकतादात्म्यस्य निषेधात्स्पर्शपरिच्छेदपरिणतत्वेऽपि स्वयं स्पर्शरूपेणापरिणमनाच्चास्पर्शः । तथा पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानशब्दपर्यायत्वात्, पुद्गलद्रव्यपर्यायेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमशब्दपर्यायत्वात्, परमार्थतः पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावाद्द्रव्येंद्रियावष्टंभेन शब्दाश्रवणात्, (५) समस्त विषयों के विशेषों में साधारण ऐसे एक ही संवेदन परिणामरूप जीव का स्वभाव होने से, वह केवल एक गंधवेदना परिणाम को पाकर गंध नहीं सूँघता; अत: अगन्ध है । (६) समस्त ज्ञेयों का ज्ञान होने पर भी सकल ज्ञेय-ज्ञायक के तादात्म्य का निषेध होने से गन्ध के ज्ञानरूप में परिणमित होने पर भी स्वयं गन्धरूप परिणमित नहीं होता; अतः अगन्ध है । - इसतरह छह प्रकार से गन्ध के निषेध से आत्मा अगन्ध है । (१) पुद्गलद्रव्य से भिन्न होने के कारण जीव में स्पर्शगुण नहीं है; अत: जीव अस्पर्श है । (२) पुद्गलद्रव्य के गुणों से भिन्न होने के कारण जीव स्वयं भी स्पर्शगुण नहीं है; अतः जीव अस्पर्श है। (३) परमार्थ से जीव पुद्गलद्रव्य का स्वामी भी नहीं है; इसलिए वह द्रव्येन्द्रिय के माध्यम से स्पर्श को नहीं स्पर्शता; अतः अस्पर्श है । (४) स्वभावदृष्टि से जीव क्षायोपशमिकभावरूप भी नहीं है, इसलिए वह भावेन्द्रिय के माध्यम से भी स्पर्श को नहीं स्पर्शता; अत: अस्पर्श है । (५) समस्त विषयों के विशेषों में साधारण ऐसे एक ही संवेदन परिणामरूप जीव का स्वभाव होने से, वह केवल एक स्पर्शवेदना परिणाम को पाकर स्पर्श को नहीं स्पर्शता; अतः अस्पर्श है। (६) समस्त ज्ञेयों का ज्ञान होने पर भी सकल ज्ञेय-ज्ञायक के तादात्म्य का निषेध होने से स्पर्श के ज्ञानरूप में परिणमित होने पर भी स्वयं स्पर्शरूप परिणमित नहीं होता; अतः अस्पर्श है । - - इसतरह छह प्रकार से स्पर्श के निषेध से आत्मा अस्पर्श है । (१) पुद्गलद्रव्य से भिन्न होने के कारण जीव में शब्दपर्याय नहीं है; अतः जीव अशब्द है । (२) पुद्गलद्रव्य की पर्यायों से भी भिन्न होने के कारण जीव स्वयं भी शब्दपर्याय नहीं है; अतः जीव अशब्द है । (३) परमार्थ से जीव पुद्गलद्रव्य का स्वामी भी नहीं है, इसलिए वह द्रव्येन्द्रिय के माध्यम
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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