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शलाका( उत्तरार्द्ध )
-पुरुष
मंगलाचरण
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अनन्तधर्ममय मूलवस्तु है, अनेकान्त सिद्धान्त महान । वाचक- वाच्य नियोग के कारण, स्याद्वाद से किया बखान ।। आचार अहिंसामय अपनाकर, निर्भय किए मृत्यु भयवान । परिग्रह संग्रह पाप बताकर, अजित किया जग का कल्याण ।। गुणों की चाह रखनेवाले पुरुष गुणों को खोजते हैं; परन्तु पूर्वविदेह स्थित वत्स देश में सुसीमा नगरी | के राजा विमलवाहन में सभी गुण अपने आप आकर बस गये थे। वह गुणज्ञ एवं गुणानुरागी होने के साथसाथ उत्साही, धीर-वीर एवं मंत्रशक्ति से सम्पन्न था। अनेक ऋद्धियाँ - सिद्धियाँ उसे प्राप्त थीं। वह पुत्रवत् स्नेह के साथ न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करता था। राजा विमलवाहन जानता था कि धर्म से आत्मा पवित्र | होता है। जबतक धर्म की सम्पूर्णत: प्राप्ति नहीं होती तबतक विशुद्ध भावों से सातिशय पुण्यार्जन तो होता ही है, जिससे पुन: पुन: परमात्मा का सान्निध्य और आत्महित के साधन मिलते रहते हैं ।
इसकारण वह जैनधर्म के अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह आदि सिद्धान्तों का भलीभांति पालन करता हुआ आत्मा-परमात्मा की साधना-आराधना करता था ।
सुखपूर्वक साम्राज्य करते हुए एक दिन क्षणभंगुर उल्कापात के निमित्त से उसको संसार की क्षणभंगुरता का आभास हो गया और वह संसार, शरीर एवं भोगों को क्षणभंगुर (नश्वर) जान कर संसार की अशरणता
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