________________
१८१
श
ला
का
पु
रु
ष
pm IF F
उ
उत्तर - उपादान कारण के मूलत: दो भेद हैं- एक त्रिकाली या ध्रुव उपादान और दूसरा तात्कालिक या क्षणिक उपादान ।
क्षणिक उपादान भी दो प्रकार का है।
-
(क) अनन्तरपूर्व क्षणवर्तीपर्याय ।
(ख) तत्समय की योग्यता ।
इसप्रकार उपादान कारण तीन प्रकार का हो गया है, जो इसप्रकार है
-
(१) त्रिकाली उपादान कारण ।
(२) अनन्त पूर्वक्षणवर्ती पर्याय के व्ययरूप क्षणिक उपादान कारण।
(३) तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान कारण ।
प्रश्न – 'योग्यता' शब्द तो आगम में अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। यहाँ 'योग्यता' का क्या अर्थ है ?
-
उत्तर - जीव की प्रत्येक समय की पर्याय में जो राग या वीतरागतारूप परिणमन करने की स्वतंत्र शक्ति है, उसे ही उपादान की तत्समय की योग्यता कहते हैं।
ती
र्थं
क
र
अ
न
द्रव्य में जब/जो कार्य होता है, वह स्वयं द्रव्य की अपनी तत्समय की उपादानगत योग्यता से ही होता | है । समय-समय का क्षणिक उपादानकारण पूर्ण स्वाधीन है, स्वतंत्र है। उसे पर की कोई अपेक्षा नहीं है । यद्यपि कार्य सम्पन्न होने के काल में कार्य के अनुकूल परद्रव्यरूप निमित्त होते अवश्य हैं; परन्तु उन निमित्तों का कार्य सम्पन्न होने में कोई योगदान नहीं होता • ऐसा ही वस्तु का स्वरूप है । "निमित्तमात्रं तत्र, योग्यता वस्तुनि स्थिता । बहिनिश्चयकालस्तु, निश्चितं तत्त्वदर्शिभिः ।।
-
ना
थ