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________________ १०० श ला का पु रु ष यह तो मनोवैज्ञानिक सत्य और वास्तविक तथ्य है कि जब कोई बड़ा काम होता है तो पहले वह हमारे सपने में ही अवतरित होता है, बाद में भौतिक रूप से साकार रूप लेता है। ठीक इसीप्रकार जब तीर्थंकर का जीव गर्भ में आता है तो उसके पूर्व माता के १६ स्वप्नों में आता है । वे १६ स्वप्न इस बात के सूचक हैं कि माता के गर्भ में तीर्थंकर का जीव आनेवाला है । कैसे होंगे वे माता-पिता, जिनके घर में तीर्थंकर अवतरित होंगे ? कैसे होंगे वे सौभाग्यशाली लोग, जिन्हें तीर्थंकर जैसे शलाका पुरुष का समागम होगा। जब माता को १६ स्वप्न आये तो उनके परिणाम अति निर्मल होते गये । प्रातः उठकर माता मरुदेवी ने राजा नाभिराज से उन स्वप्नों का फल पूछा - राजा नाभिराज ने कहा - "हे रानी ! सोलह स्वप्नों में प्रथम स्वप्न में ऐरावत हाथी का देखना धर्म श्रेष्ठ पुत्र होने का सूचक है। दूसरे स्वप्न में स्वप्न में सिंह का देखना शक्तिशाली वृषभ का देखना पुत्र का जगत गुरु होने का सूचक है। तीसरे पुत्र का सूचक है। चौथे स्वप्न में दो पुष्प मालायें देखना - | तीर्थप्रवर्तन करने का सूचक है। पाँचवें स्वप्न में लक्ष्मी द्वारा स्नान का फल इन्द्रों द्वारा जन्माभिषेक का सूचक है। छठवें स्वप्न में पूर्ण चन्द्रमा का देखना जगत के सुखी होने का प्रतीक है। सातवें स्वप्न में - - - ष भ दे ए 101 - - उदित होते सूर्य का देखना प्रतापी होने का प्रतीक है। आठवें स्वप्न में युगल स्वर्ण घट का देखना निधिपति होने का प्रतीक है। नवम स्वप्न में युगल मीनों का खेल देखना आनन्द का प्रतीक है। दसवें न्म स्वप्न में कमलयुक्त सरोवर देखना अनेक लक्षणों से शोभित होने का प्रतीक है। ग्यारहवें स्वप्न में - लहराते सागर का देखना जगत का गुरु एवं सर्वज्ञ होने का प्रतीक है। बारहवें स्वप्न में सिंहासन का देखना साम्राज्य के स्वामी होने का प्रतीक है। तेरहवें स्वप्न में देवविमान का देखना स्वर्ग से आने का प्रतीक है। चौदहवें स्वप्न में - नागेन्द्र भवन का देखना अवधिज्ञानी होने का सूचक है । पन्द्रहवें स्वप्न में - रत्नों की राशि का देखना गुणवान होने का सूचक है । सोलहवें स्वप्न में - धूमरहित अग्नि का देखना कर्मध्वंस करने का सूचक है तथा अन्त में बैल का मुख में प्रवेश करना देखना तीर्थंकर पुत्र के उत्पन्न होने का सूचक है। क ल्या ण - क सर्ग
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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