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________________ ऋषभदेव का चौथा एवं तीसरा पूर्वभव (राजा सुविध और अच्युतेन्द्र) तीर्थंकर ऋषभदेव अपने चतुर्थ पूर्व भव में स्वर्ग से च्युत होकर जम्बूद्वीप संबंधी पूर्व विदेह क्षेत्र में सुसीमा नगर में सुदृष्टि राजा की सुन्दरनन्दा रानी से सुविध नाम के पुत्र हुए। सुविध का चित्त निरन्तर ही आत्मकथा में अनुरक्त रहता था। राजकुमार सुविध ने अपने यौवन में ही काम-क्रोधादि के उद्रेक पर विजय प्राप्त कर ली थी। ठीक ही है - धर्माराधक जीव के लिए काम-क्रोधादि पर विजय पाना कुछ कठिन काम नहीं है। सुविधकुमार का विवाह उनके मामा अभयघोष चक्रवर्ती की पुत्री मनोरमा के साथ हुआ था, उनके एक केशव नाम का पुत्र हुआ। राजा वज्रजंघ की पर्याय में जो उसकी पत्नी श्रीमति थी, वही जीव स्वर्ग में स्वयंप्रभ देव हुआ था, फिर वही जीव यहाँ सुविधकुमार का पुत्र हुआ। इस पूर्व संस्कार के कारण सुविधकुमार का पुत्र पर विशेष स्नेह था। सिंह, नेवला, बन्दर और सूकर - ये चारों जीव भोगभूमि में एकसाथ उत्पन्न होकर सम्यक्त्व को प्राप्त || हुए थे। पश्चात् ईशान स्वर्ग में भी साथ रहे वे वहाँ से चयकर इसी देश में ही सुविधकुमार के समान विभूति के धारक राजपुत्र थे। उन चारों में सिंह का जीव वरदत्त, सूकर का जीव वरसेन, वानर का जीव चित्रांगद और नेवले का जीव प्रशान्तमदन थे। उन चारों राजकुमारों ने दीर्घकाल तक राजवैभव का उपभोग किया। राजवैभव के बीच रहने पर भी वे अपने चैतन्य वैभव को नहीं भूले । आत्मा की प्रतीति उनको सदैव वर्तती थी। एक बार वे चारों राजपुत्र चक्रवर्ती अभयघोष के साथ विमलवाहन जिनदेव की वन्दना को गये । वहाँ उन्होंने वन्दना कर प्रभु का दिव्य संदेश सुना, उसे सुनते ही वे चैतन्य रस में निमग्न हो गये। इतना ही नहीं, उन्होंने संसार से विरक्त होकर जिनदीक्षा भी धारण कर ली। चक्रवर्ती के साथ अन्य अठारह हजार राजाओं FEEDS BEE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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