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द्रव्यार्थिकनय के विषयभूत इस द्रव्य को ही यहाँ शुद्धद्रव्य कहा है और इसे विषय बनानेवाले नय को || | शुद्धनय, निश्चयनय या शुद्धनिश्चयनय कहा गया है।" || यहाँ शुद्धता का अर्थ रागादि से रहितपना नहीं है, यद्यपि शुद्धता में रागादिक नहीं हैं; तथापि यहाँ भेद
का नाम अशुद्धता तथा भेद से रहितपने का नाम शुद्धता है। राग की अशुद्धि को तो कालभेद में रखकर | पहले ही निकाल दिया है। इसप्रकार द्रव्यार्थिकनय का विषयभूत द्रव्य ही दृष्टि का विषय है।
तीन तरह के प्रमुख द्रव्य - अबतक की चर्चा में मुख्यतः तीन तरह के द्रव्य सामने आये। पहला - द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाववाला द्रव्य । दूसरा - प्रमाण का विषयभूत द्रव्य, जिसमें गुण व पर्यायें - दोनों सम्मिलित हैं और तीसरा - सामान्य, एक, अभेद और नित्य - इन सभी की अखण्डतावाला द्रव्य, यह तीसरा द्रव्य ही दृष्टि का विषय है। इस दृष्टि के विषयवाले द्रव्य में कालभेद, गुणभेद आदि पर्यायें सम्मिलित नहीं हैं।
प्रश्न - “प्रत्येक वस्तु स्वचतुष्टय से युक्त होती है। स्वचतुष्टय के बिना वस्तु की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जिसप्रकार प्रत्येक वस्तु स्वयं द्रव्य है, उसके प्रदेश उसका क्षेत्र हैं, उसके गुण उसका भाव हैं; उसीप्रकार उसकी पर्यायें उसका काल हैं।"
उक्त कथन में कहा गया है कि उसकी पर्यायें उसका काल है और काल को दो भागों में विभाजित किया है। एक का नाम कालभेद और दूसरे का नाम काल अभेद तथा अनन्त गुणों को एकसाथ अभेदरूप से ग्रहण करना गुणों का अभेद कहा है। प्रदेशों में भी किसी एक प्रदेश को ग्रहण करना, उसका नाम प्रदेशभेद है और असंख्य प्रदेशों को एकसाथ अभेदरूप से ग्रहण करना, वह प्रदेश-अभेद है; उसीप्रकार काल तो अनादि-अनन्त है, उस काल में से एक खण्ड को ग्रहण करने का नाम कालभेद है और काल की अखण्डता को ग्रहण करने का नाम काल-अभेद है। ये जो त्रिकाली कहा जाता है, वह काल का अभेद ही है। 'त्रिकाली' का अर्थ तीन काल नहीं है, अपितु तीनों कालों के अभेद का नाम त्रिकाली है।
प्रश्न - पर्यायें नित्य हैं या अनित्य? तो सभी सहज में ही कह देंगे कि अनित्य हैं; परन्तु जब पर्याय || सर्ग अनादिकाल से अनंतकाल तक विद्यमान रहती हैं, देव पर्याय सागरों पर्यन्त रहती है तो यह कैसे कहा जा || २४