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________________ (२६६ श ला का पु रु ष नित्यतावाला काल का खण्ड दृष्टि के विषयभूत द्रव्य में शामिल है और उस नित्यता में 'कभी नहीं पलटना' ही नहीं; अपितु 'निरन्तर पलटना' भी शामिल है। यदि हम निरन्तर पलटने को अनित्यता कहकर द्रव्य में से निकालते हैं तो मात्र पर्याय ही नहीं निकलेगी; अपितु अनित्यत्व नाम का धर्म भी निकल जाएगा और यदि भगवान आत्मा में से एक धर्म या गुण भी बाहर निकलता है तो वह भगवान आत्मा भाव से खण्डित हो गया। यदि वस्तु में से अनित्यत्व को निकाला र्या जाता है, तो पर्याय नहीं निकलेगी, अपितु अनित्यत्व नाम का धर्म ही निकल जाएगा; अतः यह काल संबंधी य भूल नहीं है; अपितु भावसंबंधी भूल है; क्योंकि अनित्यत्व धर्म गुण है और गुण भाव को कहते हैं । अनुस्यूति से रचित प्रवाह दो प्रकार का होता है, एक तो विस्तारक्रम वाला अनुस्यूति से रचित प्रवाह तथा दूसरा प्रवाहक्रमवाला अनुस्यूति से रचित प्रवाह । आत्मा में जो असंख्य प्रदेश हैं; वे बिखरकर कभी अलग-अलग नहीं होते हैं; क्योंकि उनमें अनुस्यूति से रचित एक प्रवाह है। जिसप्रकार प्रदेशों में अनुस्यूति से रचित प्रवाह है; उसीप्रकार पर्यायों में भी अनुस्यूति से रचित प्रवाह है। पूर्वपर्याय और उत्तरपर्याय - ये दोनों पृथक्-पृथक् होने पर भी इतनी मजबूती से जुड़ी हैं कि इनका जोड़ सूत में पिरोई गई माला के समान कमजोर नहीं हैं; अपितु संगमरमर से बनी मोतियों की माला के समान मजबूत है । जिसप्रकार दो प्रदेश अलग-अलग होने पर भी मजबूती से जुड़े हुए हैं। उसीप्रकार दो पर्यायें भी अलगअलग होने पर भी मजबूती से जुड़े हुए हैं। उसीप्रकार दो पर्यायें भी अलग-अलग होने पर भी अन्दर से बहुत मजबूती से जुड़ी हुई हैं। जिसप्रकार दो प्रदेशों के बीच में कोई खाली जगह नहीं है; उसीप्रकार दो पर्यायों के बीच में भी कोई खाली जगह नहीं है । जिसप्रकार द्रव्य में दो प्रदेशों के बीच में क्षेत्र की अखण्डता है; उसीप्रकार दो पर्यायों के बीच में काल प 5ots do p भी दृ ष्टि के वि ष य में शा मि है ? सर्ग
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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