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________________ BREFE FFF इसप्रकार प्रदेशों का एक निश्चित क्रम है और उसी क्रम में वे रहते हैं अर्थात् उन प्रदेशों का एक व्यवस्थित क्रम है और वह क्रम अनादिकाल से है और अनन्तकाल तक रहेगा, उसे कभी भी बदला नहीं जा सकता है। लोकाकाश के प्रदेशों के समान आत्मा के प्रदेशों का भी निश्चित क्रम है। जब आत्मा के प्रदेश सम्पूर्ण लोक में फैल जाते हैं, तब भी आत्मा के प्रदेशों का क्रम वही रहता है। वह क्रम कभी बदला नहीं जा सकता है; इसे ही विस्तारक्रम कहते हैं। | जिसप्रकार विस्तारक्रम में प्रदेशों के स्थान को बदला नहीं जा सकता है, उसीप्रकार प्रवाहक्रम में पर्याय को निश्चित समय से बदला नहीं जा सकता है। जिसप्रकार प्रदेशों का क्रम सुनिश्चित है; उसीप्रकार अनादिकाल से लेकर अनंतकाल तक जितने समय हैं, उनमें प्रत्येक द्रव्य की प्रत्येक पर्याय एक-एक समय में खचित है, न तो यह संभव है कि कल की पर्याय को आज ले आयें या आज की पर्याय को कल में ले जायें। ___यदि किताब में से पीछे के एक पेज को आगे लाना हो तो फाड़कर लाना पड़ेगा, पेज फाड़ने से फिर वह किताब अखण्ड नहीं रहेगी। यदि द्रव्य के एक प्रदेश को दूसरी जगह हटाना हो तो द्रव्य के टुकड़े करने पड़ेंगे । टुकड़े करने से वस्तु अखण्ड नहीं रहेगी; जबकि वस्तु उसे कहते हैं, जो अखण्ड हो अर्थात् जिसके खण्ड नहीं हो सकें; अतएव प्रदेशों को एक जगह से दूसरी जगह बदला नहीं जा सकता है। जिसप्रकार विस्तारक्रम में यह नियम है कि एक प्रदेश को दूसरी जगह नहीं बदला जा सकता है; उसीप्रकार प्रवाहक्रम में भी यह नियम है कि एक पर्याय को कभी भी दूसरी जगह बदला नहीं जा सकता है। जैसे - किसी की सिद्धपर्याय एक लाख वर्ष बाद हो और वह अभी लाना चाहता हो तो वह स्वकाल में से जो सिद्धपर्याय निकालेगा तो एक कट तो वहाँ लग जाएगा और जहाँ लाना चाहेगा, वहाँ पर भी एक कट लग जाएगा। यदि एक पर्याय को समय से पहले कोई स्थानांतरित करना चाहेगा तो आत्मा की अनादिअनंतता खण्डित हो जायेगी; जबकि वस्तु उसे कहते हैं, जो अखण्ड रहती है। अतएव पर्याय को कभी भी || सर्ग बदला नहीं जा सकता। F FFFEE ote oE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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