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________________ FREE FE अनेक स्वर्ग विभाग हैं। स्वर्गों के ऊपर मुक्तिस्थान (सिद्धशिला) है, सम्पूर्ण लोक की ऊँचाई १४ राजू है। जिसमें अधोलोक ७ राजू, मध्यलोक १ राजू । सुमेरु से ऊपर कल्पवासी विमानों तक उर्द्धलोक ५ राजू और ऊपर सिद्धशिला १ राजू प्रमाण में विभाजित है। प्रश्न - एक राजू का प्रमाण (माप) क्या है ? उत्तर - एक समय में असंख्यात योजन जानेवाला देवविमान असंख्यात वर्ष तक रात-दिन जितना सतत् चले, उस प्रमाण एक राजू होता है। इस प्रमाणवाले लोक में छहद्रव्य ठसाठस भरे हैं। प्रश्न - जीवादि छह द्रव्यों का सामान्य स्वरूप तो जाना; परन्तु इनके बारे में वीतरागतावर्द्धक कुछ विशेष बातें बताइये। उत्तर - जो दस प्राणों के साथ जीवित था, जीवित है और जीवित रहेगा, उसे जीव कहते हैं अर्थात् जीव अनादि-अनन्त है, अमर है। न उसे किसी ने जीवित (उत्पन्न) किया है और न कोई इसे मार सकेगा - ऐसी श्रद्धा से मृत्युभय नहीं रहता। इन दस प्राणों में पाँच इन्द्रियाँ, तीन बल, आयु और श्वासोच्छ्वास हैं। अपने पाप-पुण्य के अनुसार ये पूर्ण या अपूर्ण प्राप्त होते हैं। एकेन्द्रिय के मात्र ४ प्राण होते हैं। एक - स्पर्शन इन्द्रिय, एक कायबल, एक आयु और एक श्वासोच्छ्वास । दो इन्द्रिय जीव के - रसना इन्द्रिय और वचन बल बढ़कर छह प्राण हो जाते हैं, तीन इन्द्रिय जीव के घ्राण इन्द्रिय बढ़ जाने से सात प्राण होते हैं और चार इन्द्रिय जीव के चक्षु इन्द्रिय बढ़ने से आठ प्राण होते हैं, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के पाँचों इन्द्रियाँ तो होती हैं; किन्तु मन नहीं होता, अत: नौ प्राण होते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय को मन सहित होने से दसों प्राण होते हैं। जबतक मन नहीं है, तबतक तो मात्र कर्मफल चेतना अर्थात् मात्र पूर्वोपाजित कर्मों के फल भोगने की ही मुख्यता होती है, अत: यहाँ तक तो धर्म का पुरुषार्थ करना संभव ही नहीं है। जिन्हें मन मिल भी गया और छह द्रव्य, सात तत्त्व आदि के सुनने, समझे और श्रद्धा करने का सौभाग्य नहीं मिला तो कर्मचेतना और कर्मफलचेतना में ही जीवन चला गया, ज्ञानचेतना की जाग्रति नहीं हुई तो वह भव भी मुफ्त में चला ||१९
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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