SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BEF इस विचित्र कथा को सुनकर उन देवों को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्हें अवधिज्ञान द्वारा समस्त बातें स्पष्टरूप से ज्ञात हो गईं। उन्होंने कहा - "जिनको आपने पहले अनेक बार जान से मारा, वे दोनों हम ही हैं।" ऐसा कहकर उन्होंने मुनिराज भीम की वंदना की और वापिस चले गये। इधर मुनि भीम ने कठिन तपस्या करके केवलज्ञान प्राप्त कर कुछ काल बाद अघातिया कर्मों का नाश कर मुक्ति प्राप्त कर ली। उसके | बाद देव आयु पूर्ण होने पर हम यहाँ जयकुमार और सुलोचना के भव में आये हैं।" || देखो, परिणामों की विचित्रता ! जिसने मुनि-आर्यिका जैसे धर्मात्मा जीवों को जिन्दा जलाया हो और भव-भव में बदले की ज्वाला में जला हो, वह पापात्मा पापों का त्याग कर मुनि होकर धर्मात्मा जयकुमार और सुलोचना से भी पहले परमात्मा बन गया, मुक्त हो गया। इसीलिए किसी ने ठीक ही कहा है कि - “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं” पापी कब परमात्मा बन जायेगा, कुछ कह नहीं सकते। जितने भी परमात्मा बने, प्राय: सभी अपनी पूर्व पर्यायों में पापी भी रहे थे। दूर क्यों जायें, भगवान महावीर को ही देख लो। घोर मिथ्यादृष्टि मारीचि ही तो महावीर बने। चक्रवर्ती श्रीपाल की कथा - एकबार जयकुमार ने सुलोचना से पूछा - "चक्रवर्ती श्रीपाल की कथा मुझे याद नहीं आ रही, यदि तुम्हें स्मरण हो तो कहो - मैं उनकी कथा सुनना चाहता हूँ।" ___ सुलोचना ने कहा - "हाँ, सौभाग्यशाली चक्रवर्ती श्रीपाल की कथा तो मुझे ऐसी याद है, मानो मैंने उन्हें आज ही देखा हो।" यह कहकर सुलोचना ने कथा सुनाते हुए कहा - “श्रीपाल और उनके लघुभ्राता वसुपाल नामक दो भाई थे। श्रीपाल ने राज्यों पर विजय प्राप्त की एवं छोटे भाई को अपने आधीन युवराज पद पर आसीन किया। ये दोनों सहोदर सूर्य और चन्द्रमा के समान सुख से रहते थे। एक दिन माली ने आकर वसुपाल की माता से कहा - सुरगिरि पर्वत पर आपके पतिदेव गुणपाल मुनिराज को केवलज्ञान हुआ है। माता ने यह हर्ष का समाचार सुनकर सात पैंड चलकर नमस्कार किया। माली को पारितोषिक दिया और नगर में ढिंढोरा पिटवाने के साथ घोषणा करवाई कि “स्वामी गुणपाल मुनिराज को कैवल्य की प्राप्ति हुई है, अत: सब लोग प्रभु के दर्शन-पूजन करने चलें।" 5 FF NP to FTERFE १७
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy