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प्रथम संस्करण
(२ अक्टूबर, २००३
छठवाँ आध्यात्मिक शिक्षण शिविर ) द्वितीय संस्करण ५ हजार
( २ सितम्बर, २००४)
मूल्य २५ रुपये
मुद्रक :
प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड
बाईस गोदाम, जयपुर
५ हजार
संशोधित, संवर्द्धित द्वितीय संस्करण
यह सुखद आश्चर्य और प्रसन्नता का विषय है कि विद्वद्वर्य पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल की सभी कृतियाँ कल्पना से अधिक लोकप्रिय हुई हैं। उसी श्रृंखला में प्रस्तुत नवीन कृति शलाका पुरुष (पूर्वार्द्ध) का पाँच हजार प्रतियों में प्रकाशित प्रथम संस्करण भी मात्र ग्यारह माह में ही बिक गया है।
प्रस्तुत द्वितीय संस्करण के प्रकाशन के पूर्व पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल इस ग्रन्थ का सूक्ष्म दृष्टि से पुनरावलोकन किया है, फलस्वरूप प्रूफसंबंधी त्रुटियों का शुद्धिकरण तो हुआ ही; साथ ही जहाँ / कहीं उन्हें कथानक में परिवर्द्धन की आवश्यकता अनुभव हुई, उसे भी आपने पूरा करके ग्रन्थ को सर्वांग सुन्दर बनाकर उसकी श्री वृद्धि में चार चाँद लगा दिए हैं।
यद्यपि सामान्य पाठकों ने सुझावों के रूप में कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, जिन्होंने कुछ कहा, प्रशंसा में ही कहा; परन्तु अत्यन्त सरल हृदय लेखक ने सहज भाव से मुझे यह बताया कि इस ग्रन्थ के शुद्धिकरण और संवर्द्धन में स्वाध्यायशील एवं प्रथमानुयोग के विशेष प्रेमी श्री विनोदचन्दजी जैन, जयपुर सुपुत्र श्री अरिदमनलालजी जैन कोटा, का सराहनीय सहयोग प्राप्त हुआ। श्री विनोदजी के अग्रज श्री ऋषभनन्दन जैन दिल्ली ने भी इस कृति का गंभीरता से स्वाध्याय किया और शुद्धिपत्र की सूची बनाकर भेजी। श्री सौभाग्यमलजी जैन पूर्व तहसीलदार, जयपुर का भी शुद्धिकरण में सहयोग रहा है; एतदर्थ ये सभी विशेष धन्यवाद के पात्र हैं।
- ब्र. यशपाल जैन, प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट,
CFO