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________________ इसलिए उस लज्जा के मारे आपके पास नहीं आते हैं। अभिमान जैसी कोई बात नहीं है। कल वे अपने आप आकर आपकी सेवा करेंगे, आप चिंता क्यों करते हैं?" मंत्री के चातुर्य पूर्ण वचन सुनकर चक्रवर्ती मन ही मन हंसे "ठीक है ! ठीक है ! मंत्री ! तुम बिलकुल || ठीक कह रहे हो!" इसप्रकार कहते हुए बांधवों में प्रेम संरक्षण करने की मंत्री की सलाह से उसके प्रति मन ही मन में बहुत प्रसन्न हुए। इतने में मध्यरात्रि का समय हो गया था। उस समय 'जिनशरण' शब्द का उच्चारण करते हुए भरतेश वहाँ से उठे और विश्राम करने चले गये। ___ भरतेश ने शृंगार कर योग्य शुभ मुहूर्त में दिग्विजय के लिए प्रयाण किया। सबसे पहले भरतेश मातुश्री | के दर्शन के लिए यशस्वती के महल की ओर चले । स्तुति पाठक भरतेश की उच्च स्वर से स्तुति कर रहे थे। दूर से आते हुए पुत्र को माता यशस्वती हर्ष भरी अश्रुपूरित आँखों से देखने लगी। जिसप्रकार पूर्ण चन्द्र को देख समुद्र उमड़ता है उसीप्रकार पुत्र को देखकर माता यशस्वती अत्यधिक हर्षित हुई। बहुत-सी स्त्रियों के बीच में देवी के समान सुशोभित माता के पास जाकर भरतेश ने प्रणाम किया। माता ने आशीर्वाद दिया - "बेटा! तुम पृथ्वी को लीला मात्र से जीतने में समर्थ हो, जाओ! जिनभक्ति कर छहखण्ड पर विजय प्राप्त करके लौटो। इसप्रकार माता ने पुत्र को आशीर्वाद दिया। साथ में माता ने यह भी पूछा कि बेटा! क्या आज तुम्हारा प्रस्थान है?" भरत बोले - “माताजी ! बाहुबली कल या परसों तक यहाँ पर आनेवाला है एवं आपको मेरे दिग्विजय से लौटने तक के लिए पोदनपुर ले जायेगा। देखिये तो सही मेरे भाई की सजनता? वह विवेकी है। वह सोचता होगा - 'जबतक मैं यहाँ पर नहीं रहूँ तबतक अकेली माँ को कष्ट होगा' इस विचार से वह आपको ले जा रहा है। समझदारी में वह मेरा छोटा भाई नहीं, बल्कि बड़ा भाई है। माता! मेरी अनुपस्थिति में आपका सर्ग यहाँ पर रहना उचित भी नहीं है। इसलिए आप बाहुबली के महल में जाकर आनन्द से रहे । मैं जब दिग्विजय ||१३
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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