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________________ REFE त्रिधा लक्षण भेदेन, संस्मृतः पूर्व सूरिभिः पूरकः कुम्भकश्चैव रेचकस्तदनत्तरम् ।।३।। लक्षण के भेद से प्राणायाम तीनप्रकार का माना गया है - कुम्भक, पूरक एवं रेचक । इन तीनों का स्वरूप पहले आ ही चुका है। वस्तुत: प्राणायाम श्वासोच्छ्वास के अन्तर्गमन-बहिर्गमन एवं अन्तःस्थापन के नियंत्रण की प्रक्रिया है। | कहते हैं कि - उपर्युक्त प्राणायामों में रेचक उदर की व्याधि और कफ नष्ट होने में निमित्त होता है, पूरक शरीर पुष्ट होने में निमित्त होता है और बहुत-सी व्याधियों का नाश होने में भी निमित्त होता है तथा कुंभक हृदयकमल विकसित होने में निमित्त होता है। प्राणायाम के प्रकरण में पहले तो प्राणायाम को अन्त:करण की शुद्धि के लिए अनुशंसित किया, परंतु बाद में प्रत्याहार की अनुशंसा करते हुए प्राणायाम को ध्यान में बाधक बतलाया है। प्रत्याहार का स्वरूप इन्द्रिय और मन के विषयों से अपने उपयोग को खींचकर, इच्छानुसार जहाँ लगाना चाहें, वहाँ लगाने की प्रक्रिया को प्रत्याहार कहते हैं। ऐसा प्रत्याहार करनेवाला ज्ञानी साधक पाँचों इन्द्रियों एवं मन के विषयों से अपने ज्ञानोपयोग को (मन को) पृथक् करके आकुलता से रहित होता हुआ आत्मस्थ होता है। 'सम्यक् समाधि सिद्ध्यर्थं प्रत्याहं प्रशस्यते। प्राणायामेन विक्षिप्तं मनः स्वास्थ्यं न विन्दति ।। समाधि को भलीभांति सिद्ध करने के लिए प्रत्याहार ही प्रशंसनीय है; क्योंकि प्राणायाम से क्षोभ को | प्राप्त हुआ मन शीघ्र स्वस्थ नहीं हो पाता।' प्राणायाम की सफलता शरीर को हल्का-भारी करने में तो उपयोगी है; परन्तु मुक्ति के अभिलाषियों को अभीष्ट सिद्धि में तो प्राणायाम साधक नहीं है। ००० १. ज्ञानार्णव, सर्ग २९/३ .A414 AN १२
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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