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________________ BF FREE ३. रेचक - अपने कोष्ठ के पवन को धीरे-धीरे बाहर निकालना रेचक है। हृदय कमल की कर्णिका में पवन के साथ चित्त को स्थिर करने पर मन में विकल्प नहीं उठते और विषयों की आशा भी नष्ट हो जाती है तथा अंतरंग में विशेष ज्ञान का प्रकाश होता है। इस पवन के साधन से मन को वश में करना ही प्राणायाम का फल है। || वर्तमान में शरीरविज्ञान और मनोवैज्ञानिक पद्धति के अनुसार सामान्य ध्यान के तीन आयाम हैं - शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक । शरीरविज्ञान के अनुसंधान के अनुसार ध्यान का प्रथम प्रभाव शरीरतंत्र पर पड़ता है; इससे रक्तसंचार, हृदयस्पन्दन, ग्रन्थियों का रसस्राव और मनोभावना भी प्रभावित होती है। अन्य शारीरिक क्रियाओं के समान ध्यान से भी मस्तिष्क की तरंगों में परिवर्तन आता है। इसप्रकार सामान्य ध्यान तन को विश्रान्त और मन को स्थिर करने की प्रक्रिया है। ध्यान से इन्द्रियाँ भी स्वत: नियंत्रित हो जाती हैं। इस ध्यान के अभ्यास से नाड़ीतंत्र और मेरुदण्ड में भी जागरण होता है। भारतीय योगाभ्यासियों की भी लगभग यही मान्यता है कि योगसाधना शरीरतंत्र के शोधन की प्रक्रिया है और मनोवृत्तियों के नियंत्रण और रूपान्तरण के लिए भी योग साधना व ध्यान उपयोगी है। इसप्रकार योग, प्राणायाम और ध्यान शरीर एवं मन के नियंत्रण में लाभकारी हैं। इसमें भी सन्देह नहीं है कि यह योगसाधना और तत्संबंधी ध्यान की प्रक्रिया शारीरिक स्वास्थ्य लाभ एवं || मानसिक तनावों से छुटकारा पाने के लिए प्राकृतिक नियमों की निकटवर्ती होने से अन्य उपचारों की तुलना में सर्वोत्तम है। स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से तो इसकी उपयोगिता असंदिग्ध ही है; परन्तु इस योग और प्राणायाम के द्वारा शरीर के अंग-अंग का ध्यान करने से परमार्थरूप से या मुक्तिमार्ग के रूप में आत्मलाभ नहीं होता। भगवान की दिव्यध्वनि के अनुसार ही परवर्ती आचार्य अकलंकदेव, आचार्य शुभचंद्र आदि अनेक मनीषियों द्वारा प्राणायाम को मोक्षमार्ग में बाधक ही माना जायेगा। __ जैनदर्शन के अनुसार तो धर्मध्यान की बात ही कुछ और है, वह तो आत्मज्ञान के बिना होता ही नहीं | १. ज्ञानार्णव १. महापुराण २१/२२७ १२
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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