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________________ FREE FE | के रौद्रध्यान को धारण कर पहले अपना घात करता है। पीछे अन्य जीवों का घात हो न हो - यह उनकी | आयु और असाता कर्म पर निर्भर करता है। स्वयंभूरमण समुद्र में राघव मत्स्य के कान में जो तन्दुल नाम का छोटा मत्स्य रहता है वह यद्यपि जीवों की हिंसा बिल्कुल नहीं करता, किन्तु बड़े राघव मत्स्य के खुले मुख में आये हुए जीवों को देखकर उसे भाव आता है कि 'यह मुँह बाये हुए पड़ा है, इतने सारे जीवजंतु मुँह में आ जा रहे हैं - ये इन्हें खाता क्यों नहीं है? यदि मुझे ऐसा मौका मिले तो मैं तो एक भी प्राणी को नहीं छोड़ता, सबको खा जाता।' फलस्वरूप वह तन्दुल मत्स्य मर कर सातवें नरक में जाता है। क्रूर होना, हथियार रखना, हिंसा की कथा-वार्ता में मजा लेना, स्वभाव से ही हिंसक होना - हिंसानन्द रौद्रध्यान के चिह्न हैं। २. मृषानन्द - झूठ बोलकर दूसरों को धोखा देने का चिन्तवन करना मृषानन्द रौद्रध्यान नाम का दूसरा भेद है। कठोर वचन बोलना आदि इसके चिह्न हैं। ३. स्तेयानन्द - दूसरे के द्रव्य को ग्रहण करने, चोरी करने में अपने चित्त को लगाना, उसी का चिन्तवन करना स्तेयानन्द रौद्रध्यान है। ४. परिग्रहानन्द - अति लोभवश अनीति से जरूरत से ज्यादह धन का संग्रह करके एवं भोग सामग्री का संरक्षण आदि करके उसमें आनन्द मानना परिग्रहानन्दी रौद्रध्यान है। इसका फल नरकगति है। भौंह टेड़ी हो जाना, मुख का विकृत हो जाना, पसीना आने लगना, शरीर कांपने लगना, नेत्रों का लाल हो जाना आदि रौद्रध्यान के बाह्यचिह्न हैं। यह रौद्र ध्यान पाँचवें गुणस्थान तक होता है तथा यह कृष्णनील-कापोत - इन तीन अशुभ लेश्याओं के बल से होता है। एकसाथ अन्तर्मुहूर्त काल तक ही रहता है। आर्तध्यान की भाँति इसका भी क्षायोपशमिकभाव होता है। ____ अनादिकाल की वासना से उत्पन्न होनेवाले ये दोनों - आर्त व रौद्र ध्यान बिना किसी प्रयत्न के ही | हो जाते हैं। अत: इनसे सावधानी से बचना होगा। 4BF FEBRFP VE १२
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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