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________________ BREE FRE के कारण ध्यान में दर्शन-सुख आदि का भी व्यवहार किया जाता है। तात्पर्य यह है कि स्थिररूप से पदार्थ || | को जानना ध्यान कहलाता है इसलिए ध्यान ज्ञान की एक पर्याय विशेष है। यदि वस्तुओं को इष्ट-अनिष्ट मान कर चिन्तवन किया जायेगा तो वह असत् आर्तध्यान कहलायेगा। जो मनुष्य तत्त्वों का यथार्थ स्वरूप नहीं समझता वह विपरीत भाव से अतद्रूप वस्तु को भी तद्रूप चिन्तवन करने लगता है तथा पदार्थों में इष्ट-अनिष्टबुद्धि कर केवल संक्लेश सहित ध्यान धारण करता है। संकल्पविकल्प के वशीभूत हुआ मूर्ख प्राणी पदार्थों को इष्ट-अनिष्ट समझने लगता है। उससे राग-द्वेष उत्पन्न होते हैं, उस राग-द्वेष से इष्टानिष्ट कल्पनाएँ होती हैं, उसे ही आर्तध्यान कहते हैं और उससे कुगति का कारणभूत कर्मबन्ध होता है। विषयों में तृष्णा बढ़ानेवाली मन की प्रवृत्ति संकल्प है। उसी संकल्प को दुष्प्रणिधान कहते हैं और दुष्प्रणिधान से अपध्यान होता है। इसलिए चित्त की शुद्धि के लिए तत्त्वार्थ की भावना करनी चाहिए; क्योंकि तत्त्वार्थ की भावना से ज्ञान की शुद्धि होती है और ज्ञान की शुद्धि से ध्यान की शुद्धि होती है। शुभ और अशुभ का चिन्तवन करने से ही ध्यानों को प्रशस्त और अप्रशस्त कहा जाता है। प्रशस्त के धर्म व शुक्ल एवं अप्रशस्त के आर्त और रौद्र - ऐसे दो-दो भेद हैं। जो ध्यान शुभ परिणामों से किया जाता है, उसे प्रशस्त ध्यान कहते हैं और जो अशुभ परिणामों से किया जाता है, उसे अप्रशस्त ध्यान कहते हैं। आर्त व रौद्र ध्यान छोड़ने योग्य हैं; क्योंकि ये दुःखदायक हैं, संसार बढ़ानेवाले हैं तथा धर्म ध्यान चतुर्थ गुणस्थान अविरत सम्यग्दृष्टियों को होता है और शुक्ल ध्यान मुनियों को होता है। उपर्युक्त चारों ध्यानों का संक्षिप्त वर्णन इसप्रकार है - १. आर्तध्यान :- जो ऋत अर्थात् दुःख में हो वह आर्तध्यान है। यह चार प्रकार का है। पहला इष्टवस्तु के न मिलने से या इष्टवस्तु के वियोग हो जाने से, जो दुःख का चिन्तन चलता है वह पहला आर्तध्यान | है। दूसरा आर्त ध्यान अनिष्ट वस्तु के मिलने से, तीसरा रोग आदि होने के कारण हुई पीड़ा के चिन्तन से ॥ १२ BFFEBENEF Poov
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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