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________________ REPFF १४१|| कौशल, अंग, वंग, मगध, आंध्र, कलिंग, मद्र, पंचाल, मालवा और विदर्भ आदि देशों में गया । इसप्रकार | तीनों लोकों के गुरु भगवान ऋषभदेव के द्वारा भव्य जीवों को तत्त्वज्ञान हुआ। ___ तीर्थंकर पुण्य प्रकृति ही जिसकी संचालक है - ऐसे आदि जिनेन्द्र का समवसरण अनेक उर्वरक स्थानों को अपनी दिव्यध्वनिरूप अमृतवर्षा से सिंचन करता हुआ कैलाश पर्वत पर पहुंचा। अनन्तचतुष्टय रूप लक्ष्मी से सहित वे जिनेन्द्रदेव भक्ति से नम्रीभूत हुए बारह सभाओं के प्राणियों से घिरे | थे और आठ प्रातिहार्यों से शोभित हो रहे थे। उनके चरण कमल इन्द्रों द्वारा पूजित थे। जिनके मानस्तम्भों को देखने से मानी से मानी प्राणी भी नम्रीभूत हो जाते हैं, जो तीनों लोकों के स्वामी हैं, जिन्हें अचिन्त्य बहिरंग विभूति प्राप्त हुई है और जो पापरहित हैं - ऐसे जिनेन्द्रदेव को बारम्बार नमन । जिन्होंने चार आराधनारूप सेना को साथ लेकर पापरूप शत्रुओं को नष्ट किया है, जिन्होंने स्वर्ण के समान दैदीप्यमान स्वरूप प्राप्त किया है, भ्रमरों के समान देवगण जिनके चरण कमलों की सेवा करते हैं और जो तीन लोक के गुरु हैं - ऐसे भगवान ऋषभदेव हम सबके कल्याण में सनिमित्त बनें। जो कुलकरों में पन्द्रहवें कुलकर थे, तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर थे, जिन्होंने मनुष्यों की आजीविका की विधि और मोक्षमार्ग दर्शाया था, जो समस्त पृथ्वी के अधिपति भरत चक्रवर्ती के पिता थे, वे हमको मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करने में परम सहाय हों। ___ जिन्होंने अपने केवलज्ञान दर्पण में तत्त्वों एवं नव पदार्थों के समूह को प्रत्यक्ष जाना/देखा है, प्रतिबिम्बित किया है और जो समीचीन धर्मरूपी तीर्थ के मार्ग की रक्षा करने में मुख्य हेतु हैं - ऐसे इच्छवाकु वंश के प्रमुख श्री भगवान ऋषभदेव! आपकी पावन दिव्यध्वनि रूप दीपक हम संसारी भव्य प्राणियों को मुक्ति रूप परमपद प्राप्त होने में पथप्रदर्शक बने । हे प्रभो! आप नाभिराज के पुत्र होकर भी स्वयंभू हैं, लोकपूज्य हैं और आप हम सबकी समाधि में साधक बनें। # REv | 44 BEF EPFRE Ooole
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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