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________________ (१३७|| आर्यिका की दीक्षा ग्रहण कर ली थी। अन्य कितने ही राजा एवं राजकुमार तथा राजपुत्रियों ने जैनेश्वरी || दीक्षा ले ली थी। अत्यन्त बुद्धिमान पुरुष श्रुतकीर्ति ने श्रावकव्रत ग्रहण किए। वे लाखों देशव्रती श्रावकों में श्रेष्ठ थे, अत: वे श्रावकसंघ के प्रमुख बने । पवित्र अन्त:करण वाली सती प्रियव्रता ने श्राविका के व्रत ग्रहण किए एवं | वह श्राविकाओं में श्रेष्ठ हुई। इसप्रकार भगवान ऋषभदेव के शासन में इस भरतक्षेत्र में मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ की स्थापना हुई। जिनकल्पी एवं स्थिविरकल्पी साधु - जो साधु एकाकी रहते हैं, मुख्यतया आत्मचिन्तन में लीन रहते | हैं, उपदेश आदि प्रवृत्ति नहीं करते; उन्हें जिनकल्पी कहते हैं और जो साधु संघ के साथ रहते हैं, उपदेश देते हैं, दीक्षा देते हैं, उन्हें स्थविरकल्पी कहते हैं। तीर्थंकर मुनिराज जिनकल्पी होते हैं, अत: मुनि होते ही आजीवन मौन ले लेते हैं। मुनि अवस्था में उपदेश नहीं करते। केवली होने से उनकी दिव्यध्वनि मुख से वाणी रूप में नहीं, बल्कि सर्वांग से निरक्षरी अथवा ॐ के रूप में एकाक्षरी निकलती है। ज्ञातव्य है कि समवसरण में जो नृत्यशालायें या नाट्यशालायें होती हैं, वे सम्यग्दर्शन की निमित्त नहीं हैं, अपितु दिव्यध्वनि में आनेवाले तत्त्वोपदेश ही सम्यग्दर्शन का निमित्त है। वह देशना भी मूलवस्तु के रूप में जो जीवादि तत्त्वार्थ हैं; उसीरूप होती है। उसमें भी जीवतत्त्व प्रमुख हैं; क्योंकि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकतारूप मुक्ति का मार्ग निज भगवान आत्मा के आश्रय से ही उपलब्ध है। केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद भगवान ऋषभदेव की दिव्यध्वनि दिन में तीन बार खिरती थी और प्रत्येक बार का समय ६ घड़ी होता था। एक घड़ी २४ मिनिट की होती है। इसप्रकार कुल मिलाकर - ७ घंटे १२ मिनिट प्रतिदिन उनकी वाणी खिरती थी। विशेष निमित्त मिलने पर कभी-कभी अर्द्धरात्रि में भी उनकी दिव्यध्वनि खिरती थी, किन्तु वह तो अपवाद ही था। ऐसी यह दिव्यध्वनि एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व तक दिन में तीन बार खिरती रही और लाखों श्रोता प्रतिदिन लाभ उठाते रहे। ११ # REv | 44 BEF EPFRE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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