SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FREE | इस निर्देश के साथ ही धरणेन्द्र ने दोनों राजकुमारों को गान्धार पदा और पन्नगपदा नाम की दो विद्यायें || दीं। इसतरह अपना कार्य पूरा कर धरणेन्द्र वापिस चला गया। धरणेन्द्र के चले जाने पर वहाँ के विद्याधरों || ने दोनों राजकुमारों को अपना स्वामी मानते हुए उनकी आज्ञा का पालन कर अपने व्यवहार से उन्हें संतुष्ट किया। ॥ आचार्य कहते हैं कि - "देखो ! ये नमि और विनमि कहाँ तो उत्पन्न हुए और कहाँ उन्हें समस्त शत्रुओं को तिरस्कृत करनेवाला यह विद्याधरों के इन्द्र का पद मिला। यथार्थ में मनुष्य के द्वारा सत्कर्मों से उपार्जित पुण्य ही जगत में सुखद संयोग देनेवाला है।" । नमिकुमार ने बड़ी-बड़ी भोगोपभोग की सम्पदाओं को प्राप्त हुए दक्षिणश्रेणी पर रहनेवाले समस्त विद्याधर राजाओं को अपने आधीन कर लिया था और विनमि ने उत्तरश्रेणी पर रहनेवाले समस्त विद्याधर राजाओं को नम्रीभूत किया था। इसप्रकार वे दोनों राजकुमार विजयार्द्ध पर्वत के तट पर निष्कंटक रूप से रहते थे। हे भव्य जीवो! देखो, मुनिराज ऋषभदेव के चरणों का आश्रय लेने वाले इन दोनों राजकुमारों को पुण्य से ही इसप्रकार की विभूति प्राप्त हुई। इसलिए जो जीव स्वर्ग आदि की लक्ष्मी प्राप्त करना चाहते हैं, वे सत्कार्यों द्वारा पुण्य का संचय करें। RFav 58 र __ऋषभ मुनिराज की हस्तिनापुर में प्रथम पारणा :- अचिन्त्य महिमावन्त मुनिराज ऋषभदेव को प्रतिज्ञापूर्वक योग धारण किए जब छह माह पूर्ण हो गये तब उन्होंने देखा और सोचा कि "ये बड़े-बड़े राजवंशों में उत्पन्न हुए सुकुमार राजा, जो यतिचर्या से सर्वथा अनजान थे। भावुकतावश मेरे भरोसे मेरे साथ दीक्षित हो गये और मैंने ६ माह तक योगसाधना करने की प्रतिज्ञा ले ली तो इनको भ्रष्ट तो होना ही था, सो हो गये। अस्तु, वस्तुत: मोक्ष की साधना के लिए शरीर की स्वस्थ स्थिति रखना तो आवश्यक है ही, एतदर्थ आहार भी | कार भा९
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy