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________________ BREFF इसप्रकार दिक्कुमारी आदि देवियाँ नौ माह तक अनेकप्रकार से मरुदेवी माता की सेवा करती थीं तथा || | विविध गोष्ठियों द्वारा माता को प्रसन्न रखती थीं। २. जन्मकल्याणक - नौ माह बाद चैत्रकृष्ण नवमी के सुप्रभात में मरुदेवी के उदर से बालक ऋषभ का जन्म हुआ। तीन ज्ञान से सुशोभित बालक ऋषभ का जन्म होते ही तीनों लोकों में आनन्द छा गया। पृथ्वी आनन्द से झूम उठी। आकाश निर्मल हो गया । कल्पवृक्षों से पुष्पों की वर्षा होने लगी, सुगन्धित वायु वहने लगी। इन्द्रासन डोलने लगा। स्वर्ग में दिव्य बाजे बजने लगे। सर्वत्र आनन्द छा गया। शंका - इन पंचकल्याणकों के संबंध में एक प्रश्न यह उठता है कि मोक्ष तो कल्याण स्वरूप है ही। केवलज्ञान भी कल्याणस्वरूप है; तप भी कल्याण का कारण है। अत: इन तीनों को कल्याणक कहना तो उचित ही है; किन्तु गर्भ में आना और जन्म लेना तो कल्याण के कारण नहीं हैं। फिर इन्हें कल्याणक क्यों कहा गया है ? गर्भ में तो सभी आते हैं, जन्म भी सब लेते हैं। तो तीर्थंकरों के गर्भ-जन्म को कल्याणक कहने का क्या औचित्य है ? समाधान - यद्यपि पुन:-पुन: गर्भ में आना और बार-बार जन्म लेना कल्याणस्वरूप नहीं होता; परन्तु जिस गर्भ एवं जन्म के बाद पुन: गर्भ में आकर नौ माह तक माता के उदर में औंधे मुँह लटकने का कष्ट न भोगना पड़े और जिसे बारम्बार जन्म की असहा पीड़ा न झेलना पड़े, उस गर्भ एवं जन्म को कल्याणक कहते हैं। ऋषभदेव का जीव अब किसी माता के गर्भ में नहीं आयेगा, जन्म भी नहीं लेगा; अत: उनके जन्म को जन्मकल्याणक कहते हैं। विशेष पुण्योदय से तीर्थंकर के जीव माता के गर्भ एवं जन्म में कष्ट नहीं पाते । तीर्थंकर की माता भी गर्भकाल में एवं प्रसूति के समय कष्ट नहीं पातीं। सब सहज हो जाता है। अतः निस्सन्देह तीर्थंकर का गर्भ में आना गर्भकल्याणक एवं जन्म लेना जन्मकल्याणक है। बाल तीर्थंकर माँ का दुग्धपान नहीं करते, इन्द्र द्वारा अमृत लगा अपने पैर का अगूंठा चूसते हैं। RFavo HF OFFER
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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