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________________ रक्षाबंधन और दीपावली कार्य था ? (छात्रों की ओर लक्ष्य करके) पाँच साल तुम यहाँ रहे और बहुत अच्छा अध्ययन किया, पढ़े-लिखे; पर बीच में एक उद्दण्डता की, जिसके कारण तुम्हें निकाल दिया गया। फिर तुम्हारे पिताश्री आए, उन्होंने हाथ-पैर जोड़े, तुमने भी हाथ-पैर जोड़े; तब मुश्किल से तुम्हें दोबारा प्रवेश मिला। ____ पाँच साल की जिन्दगी में किया गया तुम्हारा यही काम सबसे बढ़िया रहा होगा ? क्या इसी के कारण तुम याद किये जाओगे ? क्या इसी से तुम्हें याद किया जाना चाहिए ? आप यही कहेंगे न कि मैंने गोल्ड मैडल लिया, उसकी बात तो नहीं करते; पर निकालने की बात करते हो, बार-बार सभी को बताते हो। इसीप्रकार ये काम अच्छा तो नहीं था कि जिसके कारण उन्हें साधुपद छोड़ना पड़ा। ___ हम श्रुतसागर मुनिराज का भी बहुत बचाव करते हैं। कहते हैं कि उन्हें आचार्यश्री के आदेश का पता नहीं था। यदि पता होता तो वे गारन्टी से वादविवाद में नहीं उलझते । मैंने 'आप कुछ भी कहो' कहानी संग्रह में एक कहानी लिखी है 'अक्षम्य अपराध ।' मुनिराज विष्णुकुमारजी का भी यह कार्य अक्षम्य अपराध ही था। उनका अपराध क्षमा कहाँ हुआ? यदि क्षम्य होता तो क्षमा हो जाता न? क्षमा हुआ तो तब माना जाता कि जब मुनिपद नहीं छूटता। जब दण्ड मिल गया, प्रायश्चित्त लेना पड़ा तो क्षमा कहाँ हुआ? मैंने एक बहुत बढ़िया वाक्य उसमें लिखा है कि श्रुत के सागर को इतना विवेक तो होना ही चाहिये था कि राह चलते लोगों से व्यर्थ के विवाद में उलझना ठीक नहीं है। ___इतना तो हम-तुम सभी समझते है कि किसी सज्जन पुरुष का राह चलते किसी राहगीर से उलझना कोई अच्छी बात नहीं है। रक्षाबंधन आचार्यश्री का आदेश सुन पाये थे या नहीं सुन पाये थे - वह बात जाने दो। पर श्रुत के सागर को इतना विवेक तो होना ही चाहिए था। यह ज्ञान काम का है या दूसरों के पूर्वभव जानना काम का है ? जातिस्मरण काम का है या यह जानना काम का है ? ____ मैं आपसे ही पूछता हूँ कि वर्तमान के काल में हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए - इसका ज्ञान होना जरूरी है या किसी के पूर्वभव का ज्ञान होना जरूरी है ? श्रुत के सागर को इतना विवेक होना चाहिए था - यह एक बात है और दूसरी बात यह कि आज्ञा देते समय, जब वहाँ संघ के सभी मुनि उपस्थित थे, तो ये उपस्थित क्यों नहीं थे ? अनुपस्थिति भी तो अच्छा काम नहीं है। हमें तो पता ही नहीं था, क्योंकि कल हम आए ही नहीं थे; इसलिए हमने सुना ही नहीं - ऐसा कहनेवाले छात्र का असत् व्यवहार क्या उपेक्षा योग्य है। ___बाकी सब आ गये थे तो वे लेट क्यों आए ? किसी के दिमाग में यह क्यों नहीं आता? हम उनसे इतना अभिभूत हो जाते हैं कि यह सब सोचने की हममें शक्ति ही नहीं रहती। मैंने उस अक्षम्य अपराध कहानी में बहुत सभ्य भाषा में यह सब लिखा है। ____ मैंने उसमें यह लिखा ही नहीं कि अकम्पनाचार्य ने उन्हें आदेश दिया कि जाओ तुम उसी स्थान पर खड़े रहो। वे तो सारी बात सुनकर एकदम गंभीर हो गये। शायद श्रुतसागर सोचते होंगे कि आज तो मुझे शाबासी मिलेगी कि अच्छे दाँत खट्टे कर दिये, लेकिन आचार्य कुछ नहीं बोले। यह मौन की भाषा है। उनकी गंभीरता देखकर श्रुतसागर के होश उड़ गये और उन्हें यह (10)
SR No.008372
Book TitleRakshabandhan aur Deepavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size177 KB
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