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________________ दीपावली रक्षाबंधन और दीपावली आज हम दीपावली के दिन निर्वाण लाडू चढ़ाते हैं, दीपक जलाते हैं, पटाखें फोड़ते हैं, एक-दूसरे को मुबारकबाद देते हैं; हैप्पी दिवाली बोलते हैं, एक-दूसरे के घर जाते हैं तो घरवाले आनेवालों को लड्ड खिलाकर स्वागत करते हैं, दीपावली के कार्ड डालते हैं; अनेक प्रकार से खुशियाँ मनाते हैं। आज के दिन हम जिसतरह का वातावरण देखते हैं; उससे लगता ही नहीं कि आज भगवान महावीर हमें छोड़कर चले गये थे। हिन्दू भाईयों के लिये तो यह पर्व राम के संयोग का पर्व है; पर हमारे लिये तो भगवान महावीर के वियोगका पर्व है - हम यह क्यों भूल जाते हैं ? हम एक-दूसरे को किस बात की यह बधाई देते हैं, मुबारक देते हैं? कल तक भगवान महावीर थे तो हमें उनका प्रवचन सुनने जाना पड़ता था; पर वे चले गये हैं तो अब छुट्टी मिल गई । क्या हम इस बात की ही खुशियाँ मनाते हैं ? अरे भाई ! यह ईद नहीं, मुहर्रम है; संयोग का नहीं वियोग का पर्व है, खुशियाँ मनाने का नहीं, संजीदगी का पर्व है। यह बात तो ऐसी ही हुई न कि एक बालक शतरंज खेल रहा था। इतने में किसी ने आकर समाचार सुनाया कि - तेरी माँ मर गई है। उसने कहा - ठीक है और वह अपने खेल में मग्न हो गया। उससे फिर कहा गया कि तुम सुनते नहीं हो, मैं यह कह रहा हूँ कि तुम्हारी माँ मर गई है। फिर भी वह उसीप्रकार खेलता रहा। जब उसे फिर सचेत करते हुये कहा गया कि तुम सुनते ही नहीं हो तो उसने कहा कि सुन लिया न? मुझे तुम्हारी बात याद भी हो गई है कि तुम कह रहे हो कि मेरी माँ मर गई है, अब तो सुन लिया न ? इसका अर्थ यह हुआ कि या तो वह 'माँ' शब्द का अर्थ नहीं जानता या फिर उसे मरने शब्द का भावभासन नहीं है; अन्यथा वह इसप्रकार खेलता नहीं रह सकता था। जब उससे यह कहा गया तो वह कहने लगा कि मैं माँ शब्द का अर्थ भी जानता हूँ और मरने का भाव भी समझता हूँ। माँ माने मदर और मरना माने डेथ हो जाना। अब तो ठीक है - ऐसा कहकर वह बालक फिर खेल में मग्न हो गया। बात यह है कि जब-जब वह बालक माँ की बात नहीं मानता था, तब-तब माँ कहती थी कि यदि तू मेरी बात नहीं मानेगा तो मर जाऊँगी। ऐसा कहने पर भी नहीं मानता तो माँ मरने का अभिनय करके लेट जाती और कहती कि लो मैं मर गई हैं; पर उसके मनाने पर, रोने-पीटने पर; उसे मनाने लगती थी। ___ अत: वह यही जानता था कि मरना ऐसा ही होता है। अभी मैं जाऊँगा, माँ को मनाऊँगा; नहीं मानेगी तो रोने लगूंगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा। यही कारण था कि 'माँ मर गई है' - यह सुनने के बाद भी वह खेलता रहता है। यदि वह उक्त वाक्य का सही अर्थ समझ जाता तो निश्चितरूप से आकुल-व्याकुल हो जाता, सामान्य नहीं रह सकता था। उसीप्रकार भगवान महावीर के निर्वाण होने के सही भाव हमारे ज्ञान में, ध्यान में नहीं आ रहा है; इसकारण ही हम इस अवसर पर एक-दूसरे को मुबारक बाद देते हैं, खुशियाँ मनाते हैं, नये-नये कपड़े पहनते हैं और लड्डु खाते हैं। यदि निर्वाण होने का सही भाव हमारे ज्ञान में होता तो हम सबकी यह स्थिति नहीं होती। ___ शब्दों में तो हम सबकुछ जानते हैं, क्योंकि हम भाषा के पण्डित हैं न, पर हमें भाव भासित नहीं होता। ___ इस बात को समझने के लिए आपको एक कल्पना करनी होगी कि हम आज के नहीं, भगवान महावीर के जमाने के हैं और जिस दिन से भगवान महावीर की दिव्यध्वनि खिरना आरंभ हुई थी, उसी दिन से (19)
SR No.008372
Book TitleRakshabandhan aur Deepavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size177 KB
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