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________________ - - - - - -- - - - - - वह हो न मोहित जान लो अन-अन्य द्रव्यों में कभी ।।१५४।। आतमा उपयोगमय उपयोग दर्शन-ज्ञान हैं। अर शुभ-अशुभ के भेद भी तो कहे हैं उपयोग के ।।१५५।। उपयोग हो शुभ पुण्यसंचय अशुभ हो तो पाप का। शुभ-अशुभ दोनों ही न हो तो कर्म का बंधन न हो ।।१५६।। श्रद्धान सिध-अणगार का अर जानना जिनदेव को। जीवकरुणा पालना बस यही है उपयोग शुभ ।।१५७।। अशुभ है उपयोग वह जो रहे नित उन्मार्ग में। श्रवण-चिंतन-संगति विपरीत विषय-कषाय में ।।१५८।। आतमा ज्ञानात्मक अनद्रव्य में मध्यस्थ हो। ------- अनंत अविभागी न हो स्निग्ध अर रूक्षत्व से ।।१६४।। परमाणुओं का परिणमन सम-विषम अर स्निग्ध हो। अर रूक्ष हो तो बंध हो दो अधिक पर न जघन्य हो ।।१६५।। दो अंश चिकने अणु चिकने-रूक्ष हों यदि चार तो। हो बंध अथवा तीन एवं पाँच में भी बंध हो ।।१६६।। यदि बहुप्रदेशी कंध सूक्षम-थूल हों संस्थान में। तो भूजलादि रूप हों वे स्वयं के परिणमन से ।।१६७।। भरा है यह लोक सूक्षम-थूल योग्य-अयोग्य जो। कर्मत्व के वे पौद्गलिक उन खंध के संयोग से ।।१६८।। स्कन्ध जो कर्मत्व के हों योग्य वे जिय परिणति । (३८) - - - - - पाकर करम में परिणमें न परिणमावे जिय उन्हें ।।१६९।। कर्मत्वगत जड़पिण्ड पुद्गल देह से देहान्तर । को प्राप्त करके देह बनते पुन-पुनः वे जीव की ।।१७०।। यह देह औदारिक तथा हो वैक्रियक या कार्मण। तेजस अहारक पाँच जो वे सभी पुद्गलद्रव्यमय ।।१७१।। चैतन्य गुणमय आतमा अव्यक्त अरस अरूप है। जानो अलिंगग्रहण इसे यह अनिर्दिष्ट अशब्द है।।१७२।। । मूर्त पुद्गल बंधे नित स्पर्श गुण के योग से। अमूर्त आतम मूर्त पुद्गल कर्म बाँधे किसतरह ।।१७३।। । जिसतरह रूपादि विरहित जीव जाने मूर्त को। - - - - - - - - - - - - - ध्यावे सदा ना रहे वह नित शुभ-अशुभ उपयोग में ।।१५९।। देह मन वाणी न उनका करण या कर्ता नहीं। ना कराऊँ मैं कभी भी अनुमोदना भी ना करूँ ।।१६०।। देह मन वच सभी पुद्गल द्रव्यमय जिनवर कहे। ये सभी जड़ स्कन्ध तो परमाणुओं के पिण्ड हैं।।१६१।। मैं नहीं पुद्गलमयी मैंने ना बनाया हैं इन्हें । मैं तन नहीं हूँ इसलिए ही देह का कर्ता नहीं ।।१६२।। अप्रदेशी अणु एक प्रदेशमय अर अशब्द हैं। अर रूक्षता-स्निग्धता से बहुप्रदेशीरूप हैं।।१६३।। परमाणु के परिणमन से इक-एक कर बढ़ते हुए। (३७) - - --
SR No.008371
Book TitlePravachansara Padyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size160 KB
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