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प्रवचनसार का सार विशिष्ट भाग दिखाया। उस फिल्म की कथा यह थी कि एक व्यक्ति किसी कारणवश कालचक्र में उल्टा घूम जाता है। कालचक्र तो सीधा घूमता है; लेकिन वह उल्टा घूमने लगता है। वह व्यक्ति ६० वर्ष का था; परंतु कालचक्र के विपरीत परिणमन से वह व्यक्ति ३० वर्ष का हो जाता है। इस पूरी फिल्म में उस नायक के जीवन में ३० से ६० वर्ष तक घटित सभी घटनाओं का चित्रण किया गया है। बाद में इन्हीं घटनाओं को फिर से दोहराया गया है।
अब, वह नायक मानसिक रूप से तो ६० वर्ष का है; लेकिन शारीरिक रूप से ३० वर्ष का हो गया है तो उसे देखकर उसकी प्रेमिका उस पर मोहित हो जाती है। फिर ३० वर्ष पूर्व की घटनाओं को पुनः प्रस्तुत किया गया है; परंतु नायक उन घटनाओं में सहज नहीं रह पाता है।
इस उदाहरण के माध्यम से मैं यह कहना चाहता हूँ कि उन्होंने कालचक्र को परिणमनशील और सुनिश्चित तो बताया; परन्तु उसे दोहराया अर्थात् एक बार घटित कालचक्र उल्टा भी घूम सकता है - ऐसा कहकर उन्हीं घटनाओं को पुनः प्रस्तुत किया।
सर्वज्ञ के ज्ञान के अनुसार कालचक्र परिणमनशील है; परंतु वह उल्टा नहीं घूम सकता। सर्वज्ञ के ज्ञान में तो ऐसा नहीं आया है कि कालचक्र रिपीट भी हो सकता है। यह मरकर दूसरा भव धारण कर सकता है; लेकिन इसी भव में ६० वर्ष का व्यक्ति ३० वर्ष का नहीं हो सकता है। पाश्चात्य विद्वानों ने सर्वज्ञ से यह सिद्धान्त समझ लिया होता तो वे ऐसी भूल नहीं करते।
अब मैं जब विदेश जाता हूँ तो वे लोग कहते हैं कि देखो इसमें आपकी क्रमबद्धपर्याय को समझाया है। वे लोग इस फिल्म को गाँवगाँव में दिखाते भी हैं। कई व्यक्तियों ने इसपर लेख भी लिखें । तब मैंने उनसे कहा कि भाई! यह सर्वज्ञ भगवान की क्रमबद्धपर्याय नहीं है; इसमें
ग्यारहवाँ प्रवचन
१७९ उक्त भूल है।
इससे ही संबंधित और एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि जिन लोगों को जातिस्मरण हो जाता है; उनका चित्त विभक्त हो जाता है।
उन्हें भूतकाल की जिस पर्याय का जातिस्मरण हुआ है; वह पर्याय वर्तमान में पुन: कभी आनेवाली नहीं है, वे संयोग पुनः कभी प्रगट होंगे ही नहीं; परन्तु जिसे जातिस्मरण हुआ है; उसका चित्त उन्हीं संयोगों में उलझता है। इसप्रकार उसका चित्त विभक्त हो जाता है। इससे उसे कुछ भी लाभ नहीं होता।
आज यदि हमें जातिस्मरण हो जावे और पूर्वभव में हम कैसे थे, कहाँ थे ? यह पता चल जावे; तब हम आधे वर्तमान जीवन में रहेंगे
और आधे पूर्वभव में। यहाँ रहें कि वहाँ रहें कुछ समझ में ही नहीं आएगा।
सबसे बड़ी समस्या तो तब खड़ी होती है; जब वे संयोग कदाचित् अभी भी विद्यमान हों; लेकिन वे उसी रूप में तो होंगे नहीं।
किसी दो वर्ष के बालक को जातिस्मरण हो जाय और वह पचास वर्ष की विधवा महिला की ओर संकेत करके कहे कि यह मेरी पत्नी है; तो क्या होगा? ___कहने का आशय यह है कि क्या वह बालक उस महिला से पत्नी के रूप में और वह महिला उस बालक से पतिरूप में व्यवहार कर सकती है ? हानि के अतिरिक्त इसमें कुछ भी होनेवाला नहीं है।
लोक में वही पर्यायें पुन: नहीं आ सकती है; लेकिन वे हमारे ज्ञान में आ सकती हैं; पर यदि वे ज्ञान में भी आए तो भी क्षयोपशमज्ञानवालों को, रागी जीवों को उनसे कुछ लाभ होनेवाला नहीं है।
रागी जीवों का चित्त इससे विभक्त ही रहनेवाला है।
जो वीतरागी-परमात्मा सर्वज्ञ भगवान हुए हैं, उन्हें अनन्त भूतकाल की पर्यायें ज्ञान में आती है; लेकिन उससे उन्हें कोई समस्या नहीं है;
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