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________________ प्रवचनसार अनुशीलन प्रवचनसार अनुशीलन (भाग-२) ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार (गाथा ९३ से गाथा २०० तक) द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार (गाथा ९३ से गाथा १२६ तक) यह तो आपको विदित ही है कि इस अधिकार का ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार - यह नाम आचार्य अमृतचन्द्र ने दिया है; जो तत्त्वप्रदीपिका टीका में उपलब्ध होता है। इसी अधिकार को आचार्य जयसेनकृत तात्पर्यवृत्ति टीका में सम्यग्दर्शन महाधिकार नाम से संबोधित किया गया है। यह भी पहले बताया जा चुका है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रवचनसार को अधिकारों में विभक्त नहीं किया है। वे तो एकसाथ एक ही क्रम से सम्पूर्ण प्रवचनसार लिखते गये हैं। ___ तत्त्वप्रदीपिका टीका में ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार के आरंभ में मंगलाचरण संबंधी कोई गाथा नहीं है; किन्तु आचार्य जयसेन कृत तात्पर्यवृत्ति टीका में मंगलाचरण संबंधी गाथा प्राप्त होती है। ऐसा लगता है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने तो यहाँ मंगलाचरण की गाथा लिखने की आवश्यकता ही नहीं समझी; किन्तु उनके परवर्ती किसी व्यक्ति को कालान्तर में ऐसा लगा कि अधिकार का आरंभ है तो मंगलाचरण भी होना ही चाहिए और उसने इस गाथा को इसमें शामिल कर दिया। जो भी हो मंगलाचरण संबंधी उक्त गाथा इसप्रकार है - तम्हा तस्स णमाई किच्चा णिच्चं पितम्मणो होज । वोच्छामि संगहादो परमट्टविणिच्छयाधिगमं ।।१०।। (हरिगीत) सम्यक्सहित चारित्रयुत मुनिराज में मन जोड़कर। नमकर कहूँसंक्षेप में सम्यक्त्व का अधिकार यह ।।१०।।
SR No.008369
Book TitlePravachansara Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size716 KB
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