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________________ गाथा-१३९ २१४ प्रवचनसार अनुशीलन पर पुद्गलाणु मंदगति से जाता है; तब उसमें जो समय लगता है, वह ही कालद्रव्य की समय नामक पर्याय है । हे भाई! भ्रम को दूर करके इस बात को जानो। उसके पहले और बाद में भी जो विद्यमान रहता है; उस ध्रौव्यता को धारण करनेवाले पदार्थ को कालद्रव्य जानना चाहिए। समय नाम की पर्याय उत्पाद-व्ययरूप है। निशंक होकर इसप्रकार श्रद्धानकरो। यद्यपि पण्डित देवीदासजी इस गाथा के भाव को १ छन्द में प्रस्तुत कर देते हैं; तथापि उसमें कुछ ऐसा नहीं है कि जिससे उसका देना आवश्यक है। आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी इस गाथा का भाव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं - "एक समय की पर्याय तो दूसरे समय में नष्ट हो जाती है, इसलिए वह तो अनित्य है; परन्तु उस अनित्य को कारणरूप शक्तिरूप नित्य पदार्थ होना चाहिए; और वह है काल पदार्थ, जिसके आधार से प्रतिसमय अवस्था दिखती है। तथा अवस्था जितने क्षेत्र में आ जाती हो उतने क्षेत्र में सम्पूर्ण द्रव्य होना चाहिए; द्रव्य उससे प्रथक् अथवा कम-ज्यादा क्षेत्र में नहीं हो सकता। इसप्रकार कालद्रव्य उत्पन्न नहीं होता, न विनष्ट होता है; परन्तु उसकी अवस्था प्रतिसमय उत्पन्न और विनष्ट होती है। तथा जहाँ पर्याय है, वहाँ उतने में कालद्रव्य स्थित है। यह 'समय' निरंश है अर्थात् समय के भाग नहीं पड़ सकते । यदि ऐसा नहीं हो तो आकाश के एक प्रदेश का निरंशपना सिद्ध नहीं हो सकता। एक परमाणु शीघ्र गति से गमन करे तो एक समय में लोक के अन्त तक पहुँच जाता है; तथापि समय के अंश नहीं पड़ते । लोक के अन्त तक जाने में एक समय लगता है तो बीच में पहुँचे तब समय से कम समय १. दिव्यध्वनिसार भाग-४, पृष्ठ-५९ लगता होगा - ऐसा नहीं है। वह तो परमाणु की शीघ्र गति को बतलाता है; परन्तु समय का भाग नहीं बताता। __जिसप्रकार एक परमाणु में विशिष्ट प्रकार की अवगाह शक्ति होती है; उसीप्रकार परमाणु में विशिष्ट प्रकार की गति परिणाम की शक्ति भी होती है। शीघ्र गति से जाते हुए उस श्रेणी में रहे हुए असंख्य कालाणुओं का एक ही समय में अतिक्रमण करता है और मंदगति से दूसरे प्रदेश तक जाने में भी एक ही समय लगता है। समय के भाग (अंश) नहीं पड़ते। यहाँ शीघ्र गति सिद्ध नहीं करना है; परन्तु यह बताना है कि असंख्य को शीघ्र गति से उल्लंघने पर भी और एक को मंदगति से उल्लंघने पर भी समय के दो भाग नहीं होते; क्योंकि समय निरंश है। एक परमाणु गति करता है, तब उसमें धर्मद्रव्य निमित्त कहलाता है और गतिपूर्वक स्थिति करने में अधर्मद्रव्य निमित्त कहलाता है। ____ एक परमाणु के मंदगति से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाने में - उसके परिणमन में एक कालाणु निमित्त कहलाता है। __ तथा अनंत परमाणुओं का स्थूल स्कंध हो तब उसके अवगाहन में एक से अधिक आकाश प्रदेश निमित्त कहलाते हैं और जब वही स्कंध सूक्ष्म परिणमन करके एक प्रदेश में रहता है, तब उसको एक प्रदेश ही निमित्त कहलाता है। तथा ज्ञान में अनंत ज्ञेय ज्ञात होते हैं, तब उसमें अनंत निमित्त कहलाते हैं और एक ज्ञात हो तब उसमें एक निमित्त कहलाता है। इसप्रकार उपादान में जिसप्रकार का कार्य होता है, वैसा आरोप निमित्त में किया जाता है। निमित्त उपादान में कुछ नहीं करता। इसप्रकार परमाणु की शीघ्रगति का, परमाणु की सूक्ष्म अवगाहन शक्ति का, ज्ञेयों को एकसाथ जानने का निर्णय कौन करता है? क्या परमाणु को पता है कि मेरे साथ अन्य अनंत परमाणु आकर १. दिव्यध्वनिसार भाग-४, पृष्ठ-६० २. वही, पृष्ठ-६१
SR No.008369
Book TitlePravachansara Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size716 KB
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