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________________ ७४ प्रवचनसार सकलैकदहनाकारमात्मानं परिणमति, तथा समस्तं ज्ञेयं जानन् ज्ञाता समस्तज्ञेयहेतुकसमस्तज्ञेयाकारपर्यायपरिणतसकलैकज्ञानाकारं चेतनत्वात् स्वानुभवप्रत्यक्षमात्मानं परिणमति । एवं किल द्रव्यस्वभावः। यस्तु समस्तं ज्ञेयं न जानाति स समस्तं दाह्यमदहन् समस्तदाहाहेतुकसमस्तदाहाकारपर्यायपरिणतसकलैकदहनाकारमात्मानं दहन इव समस्तज्ञेयहेतुकसमस्तज्ञेयाकारपर्यायपरिणतसकलैकज्ञानाकारमात्मानं चेतनत्वात् स्वानुभवप्रत्यक्षत्वेऽपिन परिणमति। एवमेतदायाति यः सर्वं न जानाति स आत्मानं न जानाति ।।४८।। (स्वरूप) है- ऐसेएक अपनेरूप (अग्निरूप) परिणमित होती है; उसीप्रकार समस्त ज्ञेयों को जानता हुआ ज्ञाता आत्मा समस्त ज्ञेय जिसका निमित्त है - ऐसे समस्त ज्ञेयाकार पर्यायरूप परिणमित सकल एक ज्ञान जिसका आकार (स्वरूप) है - ऐसे निजरूप से जो चेतनता के कारण स्वानुभव प्रत्यक्ष है - उसरूप परिणमित होता है। वस्तुत: द्रव्य का ऐसा स्वभाव है। किन्तु जो समस्त ज्ञेय को नहीं जानता, वह आत्मा; जिसप्रकार समस्त दाहा को नहीं जलाती ग्नि समस्त दाहाहेतुक समस्त दाहाकार-पर्यायरूप परिणमित सकल एक दहन जिसका आकार (स्वरूप) है , ऐसे अपनेरूप में परिणमित नहीं होती; उसीप्रकार समस्त ज्ञेयहेतुक समस्त ज्ञेयाकार पर्यायरूप परिणमित सकल एक ज्ञान जिसका आकार है; ऐसे अपने रूप में - स्वयं चेतनता के कारण स्वानुभव प्रत्यक्ष होने पर भी- परिणमित नहीं होता अर्थात् अपने को परिपूर्णतया अनुभव नहीं करता, नहीं जानता। इसप्रकार यह फलित होता है कि जो सबकोनहीं जानता, वह अपने आत्मा कोभीनहीं जानता।" यहाँ एक प्रश्न हो सकता है कि इन्हीं सबमें से एक कोई भी जीवद्रव्य ज्ञाता है' - ऐसा कहकर यहाँ क्या कहना चाहते हैं; क्या सभी जीवद्रव्य ज्ञाता नहीं हैं ? अरे भाई ! ज्ञाता तो सभी जीव हैं, किन्तु सभी जीवद्रव्य ज्ञेय भी हैं। जब एक जीवद्रव्य जानने का काम करता है, जानता है, सभी को जानता है; तब वह अकेला स्वयं ज्ञाता होता है और अन्य अजीव द्रव्यों के साथ-साथ उससे भिन्न शेष जीवद्रव्य भी ज्ञेय ही होते हैं। इसप्रकार प्रत्येक जीव स्वयं के लिए ज्ञाता और ज्ञेय - दोनों है; किन्तु अन्यजीव उसके लिए अजीवद्रव्यों के समान ज्ञेय ही हैं। यही कारण है कि यहाँ ऐसा लिखा गया है कि इन्हीं सब में से एक कोई भी जीवद्रव्य ज्ञाता है। यद्यपि आचार्य जयसेन तात्पर्यवृत्ति में तत्त्वप्रदीपिका का तो अनुसरण करते ही हैं; तथापि वे यह स्पष्ट कर देते हैं कि सभी पदार्थ ज्ञेय हैं और उनमें से विवक्षित एकजीवद्रव्य ज्ञाता है।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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