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प्रवचनसार
'धम्मेण परिणदप्पा अप्पा जदि सुद्धसंपओगजुदो । पावदि णिव्वाणसुहं सुहोवजुत्तो व सग्गसुहं । । '
- इति स्वयमेव निरूपितत्वादस्ति तावच्छुभोपयोगस्य धर्मेण सहैकार्थसमवायः । ततः शुभोपयोगिनोऽपि धर्मसद्भावाद्भवेयुः श्रमणाः । किंतु तेषां शुद्धोपयोगिभिः समं समकाष्ठत्वं न भवेत्, यत: शुद्धोपयोगिनो निरस्तसमस्तकषायत्वादनास्रवा एव । इमे पुनरनवकीर्णकषायकणत्वात्सास्रवा एव । अत एव च शुद्धोपयोगिभिः समममीन समुच्चीयन्ते, केवलमन्वाचीयन्त एव ।। २४५ ।।
शुद्धोपयोग की भूमिका के अत्यन्त नजदीक निवास कर रहे हैं, कषाय ने जिनकी शक्ति कुण्ठित की है और अत्यन्त आतुर मनवाले हैं; वे श्रमण, श्रमण हैं या नहीं ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता है कि
प्राप्त करते मोक्षसुख शुद्धोपयोगी आतमा ।
पर प्राप्त करते स्वर्ग सुख ही शुभोपयोगी आतमा । । ११ । ।
उक्त प्रतिपादन ग्यारहवीं गाथा में आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने स्वयं किया है; इसलिए शुभयोग का धर्म के साथ एकार्थ समवाय ( एकसाथ रह सकने रूप संबंध ) है । अत: शुभोपयोगी भी श्रमण हैं; क्योंकि उनके (तीन कषाय के अभावरूप) धर्म का सद्भाव है, किन्तु वे शुद्धोपयोगियों के समान नहीं हैं; क्योंकि शुद्धोपयोगी समस्त कषायों को निरस्त किया होने से निरास्रव ही हैं और शुभोपयोगी के कषायकण अविनष्ट होने से सास्रव ही हैं। यही कारण है कि इन्हें शुद्धोपयोगियों के साथ नहीं लिया जाता; पीछे से गौणरूप में ही लिया जाता है । "
ध्यान रहे यहाँ सातवें गुणस्थान और ऊपर के ध्यानारूढ़ मुनिराजों को शुद्धोपयोगी और जिनके मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधी आदि तीन कषाय चौकड़ी के अभावरूप शुद्धपरिणति तो प्रगट हो गई है; पर उपयोग देवादि की भक्ति, शास्त्र- स्वाध्याय आदि शुभभावों में लगा रहता है; उन्हें शुभोपयोगी मुनिराज कहा गया है। ध्यान रहे यहाँ मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनिराजों को शुभोपयोगी नहीं कहा जा रहा है। उक्त संदर्भ में इसी गाथा की तात्पर्यवृत्ति टीका में आचार्य जयसेन का निम्नांकित कथन दृष्टव्य है
"निज शुद्धात्मा के बल से सम्पूर्ण शुभ-अशुभ संबंधी संकल्प-विकल्प रहित होने से शुद्धोपयोगी मुनिराज निरास्रव ही हैं; शेष शुभोपयोगी मुनिराज मिथ्यात्व और विषय - कषायरूप अशुभ आस्रव का निरोध होने पर भी पुण्यास्रव सहित हैं - ऐसा भाव है । "
इस गाथा में अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में यह बात कही गई है कि शुद्धोपयोग में लीन मुनिराज ही निरास्रवी हैं, छठवें गुणस्थान के शुभभावों में स्थित मुनिराज सास्रवी हैं। यहाँ यह बात