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चरणानुयोगसूचकचूलिका : आचरणप्रज्ञापनाधिकार
४३५ प्रश्न – यदि स्त्रियाँ सदोष होती हैं तो फिर सीता, रुक्मणी, कुन्ती, द्रोपदी, सुभद्रा आदि स्त्रियाँ जिनदीक्षा ग्रहण कर सोलहवें स्वर्ग में कैसे गईं ?
उत्तर - इसमें कोई दोष नहीं; क्योंकि उनके लिए स्वर्ग में जाने का निषेध नहीं है। वहाँ से आकर पुरुष होकर मोक्ष जाने में भी कोई आपत्ति नहीं है; क्योंकि स्त्रियों का उसी भव से मोक्ष जाने का निषेध है, अन्य भव से पुरुष होकर मोक्ष जाने में कोई दोष नहीं है।।२०-३०||
२२४वीं गाथा में यह कहा गया है कि उत्सर्गमार्ग ही श्रेष्ठ है, अपवादमार्ग नहीं; और अब इस गाथा में अपवादमार्ग में होनेवाली विशेष बातें समझा रहे हैं।
उपकरणं जिनमार्गे लिङ्गं यथाजातरूपमिति भणितम् ।
गुरुवचनमपि च विनयः सूत्राध्ययनं च निर्दिष्टम् ।।२२५।। __यो हिनामाप्रतिषिद्धोऽस्मिन्नुपधिरपवादः, स खलु निखिलोऽपि श्रामण्यपर्यायसहकारिकारणत्वेनोपकारकारकत्वादुपकरणभूत एव, न पुनरन्यः।
तस्य तु विशेषा: सर्वाहार्यवर्जितसहजरूपापेक्षितयथाजातरूपत्वेन बहिरंगलिंगभूताः कायपुद्गला: श्रूयमाणतत्कालबोधकगुरुगीर्यमाणात्मतत्त्वद्योतकसिद्धोपदेशवचनपुद्गला:, तथाधीयमाननित्यबोधकानादिनिधनशुद्धात्मतत्त्वद्योतनसमर्थश्रुतज्ञानसाधनीभूतशब्दात्मकसूत्रपुद्गलाश्च, शुद्धात्मतत्त्वव्यञ्जकदर्शनादिपर्यायतत्परिणतपुरुषविनीतताभिप्रायप्रवर्तकचित्तपुद्गलाश्च भवन्ति । इदमत्र तात्पर्यं, कायवद्वचनमनसी अपिन वस्तुधर्मः ।।२२५।। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(हरिगीत ) जन्मते शिशुसम नगन तन विनय अर गुरु के वचन |
आगम पठन हैं उपकरण जिनमार्ग का ऐसा कथन ||२२५|| जिनमार्ग में यथाजातरूप नग्न दिगम्बर अवस्था को उपकरण कहा गया है और गुरु के वचन, सूत्रों का अध्ययन और विनय को भी उपकरण कहा गया है।
आचार्य अमृतचन्द्र की तत्त्वप्रदीपिका टीका में इस गाथा के भाव को इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
“अपवादरूप अनिषिद्ध उपधि श्रामण्य पर्याय की सहकारी कारण के रूप में उपकार करनेवाली होने से उपकरण हैं, अन्य नहीं।