________________
प्रवचनसार
___ यदि खल्वयमात्मा हीनोज्ञानादित्यभ्युपगम्यते, तदात्मनोऽतिरिच्यमानं ज्ञानं स्वाश्रयभूतचेतनद्रव्यसमवायाभावादचेतनं भवद्रूपादिगुणकल्पतामापन्नं न जानाति।
यदि पुनर्ज्ञानादधिक इति पक्षः कक्षीक्रियते तदावश्यं ज्ञानादतिरिक्तत्वात् पृथग्भूतो भवन् घटपटादिस्थानीयतामापन्नोज्ञानमन्तरेण न जानाति ।
ततो ज्ञानप्रमाण एवायमात्माभ्यपगन्तव्यः ।।२४-२५।।
इस जगत में जिसके मत में आत्माज्ञानप्रमाण नहीं है; उसके मत में वह आत्मा अवश्य ही या तोज्ञान से हीन (छोटा) होगा या फिर ज्ञान से अधिक (बड़ा) होगा।
यदि वह आत्माज्ञान से हीन (छोटा) हो तो वह ज्ञान अचेतन होने से जान नहीं सकेगा और अधिक (बड़ा) हुआ तो वह आत्मा, ज्ञान के बिना कैसे जानेगा? उक्त गाथाओं का भाव तत्त्वप्रदीपिका में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
“यदि यह स्वीकार किया जाय कि आत्मा ज्ञान से हीन है तो आत्मा से आगे बढ़ जानेवाला ज्ञान अपने आश्रयभूत चेतनद्रव्य का समवाय (संबंध) न रहने से अचेतन होता हुआरूपादिगुणों जैसा अचेतन होने से नहीं जानेगा।
यदि ऐसा पक्ष स्वीकार किया जावे कि यह आत्मा ज्ञान से अधिक है तो ज्ञान से आगे बढ़ जाने से ज्ञान से रहित होता हुआ आत्मा, घट-पटादिजैसा होने से ज्ञान के बिना नहीं जानेगा।
इसलिए यह आत्माज्ञानप्रमाण ही मानना योग्य है।"
सीधी-सी बात है कि यदि आत्मा ज्ञान के बराबर नहीं है तो या तो वह ज्ञान छोटा होगा या फिर बड़ा होगा। छोटा होने की स्थिति में ज्ञान का वह अंश कि जिसको चेतन आत्मा का आश्रय प्राप्त नहीं है, उसे अचेतनत्व का प्रसंग आयेगा। उक्त ज्ञानांश को अचेतन मानने पर वह जानेगा कैसे ? क्योंकि जानना तो चेतन द्रव्य का ही काम है।
यदि आत्मा ज्ञान से बड़ा होगा तो फिर आत्मा का जो अंश ज्ञान से रहित होगा, वह जानने का काम कैसे करेगा? अत: यही उचित है कि आत्मा को ज्ञानप्रमाण ही स्वीकार किया जाये।
सबकुछ मिलाकर इन गाथाओं में यही कहा गया है कि सभी द्रव्यों के द्रव्य-गुण-पर्यायों का क्षेत्र एक ही होता है, एक जैसा ही होता है, बराबर ही होता है। आत्मा भी एक द्रव्य है; अत: वह, उसका ज्ञानगुण और उसकी केवलज्ञान पर्याय का क्षेत्र भी एक ही है, समान ही है, बराबर ही है। आत्मा के ज्ञानगुण की केवलज्ञान पर्याय लोकालोक को जानती है; इसकारण उसे सर्वगत कहा गया है। जब वह सर्वगत है तो उसका आधारभूत ज्ञानगुण और आत्मद्रव्य भी सर्वगत ही होना चाहिए । इसी आधार पर यह कहा गया है कि आत्मद्रव्य, उसका ज्ञानगुण और उसकी केवलज्ञानपर्याय सर्वगत है।