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प्रवचनसार
तब आचार्यदेव ने इस पंक्ति के रूप में उत्तर दिया हो कि इस मार्ग के प्रणेता हम खड़े हैं न? स्वयं को 'प्रणेता' कहकर आचार्यश्री शिष्यों को हिम्मत दे रहे हैं।
हमें ये शब्द सुनकर ऐसा लग सकता है कि ये अभिमान से भरे शब्द हैं; किन्तु ये अभिमान से भरे हुए शब्द न होकर आत्मविश्वास से भरे हुए शब्द हैं अर्थात् शिष्यों में आत्मविश्वास भरनेवाले शब्द हैं ।
यह वह पंक्ति है, जिस पंक्ति को पढ़ने के बाद गुरुदेवश्री उछल पड़े थे। वे इन शब्दों पर इतने रीझ गये थे, इतने भावविह्वल हो गये थे कि मानो अमृतचन्द्राचार्य साक्षात् ही उनसे यह कह रहे हों कि तुम्हारें पीछे हम खड़े हैं न, क्यों चिन्ता करते हो ?
ग्रंथारंभ में आचार्यदेव ने पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार करके मोह और क्षोभ से रहित साम्यभाव धारण करने की प्रतिज्ञा की थी और कहा था कि यह साम्यभाव ही चारित्र है, धर्म है। उक्त चारित्र को धारण करने के लिए जिस तत्त्वज्ञान को जानना अति आवश्यक है; उक्त तत्त्वज्ञान की चर्चा ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन और ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन अधिकारों में करने के उपरान्त आचार्यदेव कह रहे हैं कि जिसप्रकार ज्ञानतत्त्व और ज्ञेयतत्त्व को जान कर पंचपरमेष्ठी के नमस्कारपूर्वक हमने चारित्र धारण किया है; यदि तुम दुखों से छूटना चाहते हो तो ; उसीप्रकार ज्ञानतत्त्व और ज्ञेयतत्त्व को समझ कर पंचपरमेष्ठी के स्मरणपूर्वक तुम भी चारित्र धारण करो; क्योंकि सम्यग्दर्शन - ज्ञानपूर्वक चारित्र धारण किये बिना दुःखों से छुटकारा संभव
है, मुक्ति प्राप्त करना संभव नहीं है । चारित्र अंगीकार करने में यदि तुम्हें कुछ भय लग रहा हो तो हम तुमसे कहते हैं कि तुम चिन्ता न करो, तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए मुक्तिमार्ग के प्रणेता- जानकार हम खड़े हैं न !
देखो, आचार्यदेव की वाणी में कितना आत्मविश्वास और करुणाभाव प्रस्फुटित हो रहा है। वे मात्र इस बात को कहते ही नहीं हैं; अपितु अगली गाथाओं और उनकी टीका में मुनिधर्म धारण करने की विधि भी बताते हैं ।। २०१ ।।
विगत गाथा में कहा गया है कि श्रामण्य को धारण करो और अब इन गाथाओं में बता रहे हैं कि दीक्षा धारण करने के पूर्व दीक्षार्थी को क्या-क्या करना चाहिए। सबसे पहले अपने संबंधियों से छुटकारा पाकर पंचाचार धारण करने के लिए आचार्यदेव के पास जाकर अत्यन्त विनयपूर्वक दीक्षा देने की प्रार्थना करनी चाहिए।
इन गाथाओं में छुटकारा पाने और दीक्षा ग्रहण करने की विधि का ही निरूपण है ।