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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : ज्ञानज्ञेयविभागाधिकार
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स्पष्टीकरण करते हैं। गाथाओं का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(हरिगीत ) राग-रुष अर मोह ये परिणाम इनसे बंध हो। राग है शुभ-अशुभ किन्तु मोह-रुष तो अशुभ ही।।१८०|| पर के प्रति शुभभाव पुण पर अशुभ तो बस पाप है।
पर दुःखक्षय का हेतु तो बस अनन्यगत परिणाम है।।१८१|| परिणामों से बंध होता है और परिणाम मोह-राग-द्वेष से युक्त हैं। उनमें मोह और द्वेष तो अशुभ ही हैं; पर राग शुभ और अशुभ - दोनों रूप होता है। ___पर के प्रति शुभ परिणाम पुण्य है और अशुभ परिणाम पाप है - ऐसा कहा गया है। जो परिणाम दूसरों के प्रति प्रवर्तमान नहीं है, वह परिणाम समय पर दुःख-क्षय का कारण है अथवा शास्त्रों में ऐसा कहा है कि वह परिणाम दुःख-क्षय का कारण है। __द्रव्यबन्धोऽस्ति तावद्विशिष्टपरिणामात् । विशिष्टत्वं तु परिणामस्य रागद्वेषमोहमयत्वेन । तच्च शुभाशुभत्वेन द्वैतानुवर्ति । तत्र मोहद्वेषमयत्वेनाशुभत्वं रागमयत्वेन तु शुभत्वं चाशुभत्वं च। विशुद्धिसंक्लेशाङ्गत्वेन रागस्य द्वैविध्यात् भवति ।।१८०।।
द्विविधस्तावत्परिणाम: परद्रव्यप्रवृत्तः स्वद्रव्यप्रवृत्तश्च । तत्र परद्रव्यप्रवृत्तः परोपरक्तत्वाद्विशिष्टपरिणाम:, स्वद्रव्यप्रवृत्तस्तु परानुपरक्तत्वादविशिष्टपरिणामः । तत्रोक्तौ द्वौ विशिष्टपरिणामस्य विशेषौ, शुभपरिणामोऽशुभपरिणामश्च। तत्र पुण्यपुद्गलबन्धकारणत्वात् शुभपरिणाम: पुण्यं, पापपुद्गलबन्धकारणत्वादशुभपरिणाम: पापम् । अविशिष्टपरिणामस्य तु शुद्धत्वेनैकत्वान्नास्ति विशेषः । स काले संसारदुःखहेतुकर्मपुद्गलक्षयकारणत्वात्संसारदुःखहेतुकर्मपुद्गलक्षयात्मको मोक्ष एव ।।१८१।।
आ. अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इन गाथाओं का भाव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
“द्रव्यबंध विशिष्ट परिणाम से होता है। परिणाम विशिष्टता मोह-राग-द्वेषमयता के कारण है। वह परिणाम शुभत्व और अशुभत्व के कारण दोपने को प्राप्त होता है। उनमें से मोह
और द्वेषभाव अशुभरूप होते हैं और रागभाव शुभ और अशुभ - दोनों प्रकार का होता है; क्योंकि राग विशुद्धि और संक्लेश युक्त होता है।
परिणाम दो प्रकार का होता है - परद्रव्यप्रवृत्त और स्वद्रव्यप्रवृत्त । पर के द्वारा