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प्रवचनसार
___ लोकाकाश तुल्य असंख्यात प्रदेशी होने से यह आत्मा सप्रदेश है। आत्मा के असंख्यात प्रदेशों में कायवर्गणा, वचनवर्गणा और मनोवर्गणा के आलंबनवाला परिस्पन्द (कंपन) जिसप्रकार होता है; उसीप्रकार से कर्मपुद्गल के समूह स्वयमेव कंपन करते हुए प्रवेश करते हैं, रहते हैं और जाते भी हैं तथा यदिजीव के मोह-राग-द्वेषरूपभाव हों तो बंधते भी हैं।
इसलिए निश्चित होता है कि द्रव्यबंध का हेतु भावबंध है।"
आचार्य जयसेन इन गाथाओं के भाव को मूलत: तो तत्त्वप्रदीपिका के समान ही स्पष्ट करते हैं; किन्तु दूसरा अर्थ करते हुए कहते हैं कि प्रवेश करते हैं अर्थात् प्रदेशबंध, ठहरते हैं अर्थात् स्थितिबंध, फल देकर चले जाते हैं अर्थात् अनुभागबंध और बंधते हैं अर्थात् प्रकृतिबंध - इसप्रकार इन गाथाओं में चारों बंधों की चर्चा आ गई है।
उक्त सम्पूर्ण कथन का सार यह है कि पुराने पौद्गलिक द्रव्यकर्मों के साथ नये पौद्गलिक द्रव्यकर्मों का बंधन नियमानुसार होता है। जिनागम में स्कंधरूप बंध के कुछ नियम हैं। स्निग्ध अथ द्रव्यबन्धहेतुत्वेन रागपरिणाममात्रस्य भावबन्धस्य निश्चयबन्धत्वं साधयति -
रत्तो बंधदि कम्मं मच्चदि कम्मेहिं रागरहिदप्पा। एसो बंधसमासो जीवाणं जाण णिच्छयदो।।१७९।।
रक्तो बध्नाति कर्म मुच्यते कर्मभ्यां रागरहितात्मा।
एष बन्ध समासो जीवानां जानीहि निश्चयतः ।।१७९।। और रूक्ष में बंध होता है, दो गुण अधिक हों तो बंध होता है, जघन्यगुणों में बंध नहीं होता आदि नियमों के अनुसार होनेवाला बंध स्पर्श रहित जीव और पुद्गल में कैसे हो सकता है ? ___ यही कारण है कि यहाँ कहा है कि नये द्रव्यबंध का बंध पुराने द्रव्यबंध के साथ होता है
और जीव के साथ मोह-राग-द्वेषादि भावबंध होता है। भावकर्म और द्रव्यकर्मों का परस्पर निमित्त-नैमित्तिक संबंध है, कर्ता-कर्म संबंध नहीं। द्रव्यकर्मों का जीवकेसाथ जो एकक्षेत्रावगाह संबंध होता है, उसे यहाँ विशिष्टतर विशेषण से संबोधित किया गया है। विशिष्टतर शब्द के माध्यम से आचार्य यह कहना चाहते हैं कि रागी जीव और पुद्गल कर्म के बीच निश्चय से तो कोई संबंध है ही नहीं: पर जो एकक्षेत्रावगाह संबंध है; वह भी विशेष प्रकार का है क्योंकि एकक्षेत्रावगाह तो धर्मादि द्रव्यों के साथ भी है; वह वैसा नहीं, जैसा जीव और द्रव्यकर्मों में है। धर्मादि द्रव्यों के साथ जो एकक्षेत्रावगाह संबंध है, उसमें कर्मोदयादि का निमित्त नहीं है, कोई बंधन नहीं है; किन्तु द्रव्यकर्म और देहादि नोकर्म के साथ होनेवाले एकक्षेत्रावगाह में कर्मोदय निमित्त हैं और सुनिश्चित समय के लिए एक क्षेत्र में रहनेरूप बंधन है।।१७७-१७८||