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प्रवचनसार
८. जो उपयोगलक्षण लिंग को ग्रहण नहीं करता अर्थात् उपयोगलक्षण लिंग को बाहर से नहीं लाता; वह आत्मा अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा बाहर से नहीं लाये जानेवाले ज्ञानवाला है - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है।
९. जिसके उपयोगलक्षण लिंग का पर के द्वारा हरण नहीं हो सकता; वह आत्मा अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा के ज्ञान का हरण नहीं किया जा सकता - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है।
१. जिसप्रकार सूर्य में मलिनता नहीं है, उसीप्रकार जिसके उपयोगलक्षण लिंग में लिंगादुपयोगाख्यलक्षणाद्ग्रहणं पौद्गलिककर्मादान यस्येति द्रव्यकर्मासंपृथक्तत्वस्य । (१२) न लिंगेभ्य इन्द्रियेभ्यो ग्रहणं विषयाणामुपभोगो यस्येति विषयोपभोक्तृत्वाभावस्य । (१३) न लिंगात्मनोवेन्द्रियादिलक्षणाद्ग्रहणंजीवस्य धारणं यस्येति शुक्रार्तवानुविधायित्वाभावस्य। (१४) न लिंगस्य मेहनाकारस्य ग्रहणं यस्येति लौकिकसाधनमात्रत्वाभावस्य। (१५) न लिंगेनामेहनाकारेण ग्रहणं लोकव्याप्तिर्यस्येति कुहुकप्रसिद्धसाधनाकारलोकव्याप्तित्वाभावस्य। (१६) न लिंगानांस्त्रीपुत्रनपुंसकवेदानां ग्रहणं यस्येति स्त्रीपुत्रनपुंसकद्रव्यभावाभावस्य । (१७) न लिंगानां धर्मध्वजानां ग्रहणं यस्येति बहिरङ्गयतिलिंगाभावस्य । (१८) न लिंग गुणो ग्रहणमलिनतानहीं है, विकार नहीं है; वह आत्मा अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा शुद्धोपयोगस्वभावी है - इस अर्थ की प्राप्ति होती है।
११. जिसके उपयोगलक्षण लिंग द्वारा पौद्गलिक कर्मों का ग्रहण नहीं है; वह आत्मा अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा द्रव्यकर्म से असंयुक्त है - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है।
१२. जिसे लिंग अर्थात् इन्द्रियों द्वारा ग्रहण अर्थात् विषयों का उपभोग नहीं है; वह आत्मा अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा विषयों का उपभोक्ता नहीं है - इस अर्थ की प्राप्ति होती
१३. लिंग अर्थात् मन अथवाइन्द्रियादिलक्षणों के द्वारा ग्रहण अर्थात् जीवत्व कोधारण किये रहना जिसके नहीं है, वह अलिंगग्रहण है । इसप्रकार आत्मारज और वीर्य के अनुसार होनेवाला नहीं है-इस अर्थ की प्राप्ति होती है।
१४. लिंग अर्थात् मेहनाकार (पुरुषादिकी गुप्तेन्द्रिय के आकार) का ग्रहण जिसके नहीं है; वह अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा लौकिक साधनमात्र नहीं है - इस अर्थ की प्राप्ति होती है।
१५. लिंग अर्थात् अमेहनाकार के द्वारा जिसका ग्रहण अर्थात् लोक में व्यापकत्व नहीं है; वह आत्मा पाखण्डियों के प्रसिद्ध साधनरूप आकारवाला-लोकव्याप्तिवाला नहीं है - ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है।