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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार
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के गुणों की चर्चा करते हैं। गाथाओं का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
आकाशस्यावगाहो धर्मद्रव्यस्य गमनहेतुत्वम् । धर्मेतरद्रव्यस्य तु गुणः पुनः स्थानकारणता ।।१३३।। कालस्य वर्तना स्यात् गुण उपयोग इति आत्मनोभणितः।
ज्ञेयाः संक्षेपाद्गुणा हि मूर्तिप्रहीणानाम् ।।१३४।। विशेषगुणो हि युगपत्सर्वद्रव्याणां साधारणावगाहहेतुत्वमाकाशस्य, सकृत्सर्वेषां गमनपरिणामिनां जीवपुद्गलानां गमनहेतुत्वं धर्मस्य, सकृत्सर्वेषां स्थानपरिणामिनां जीवपुद्गलानां स्थानहेतुत्वमधर्मस्य, अशेषशेषद्रव्याणां प्रतिपर्यायं समयवृत्तिहेतुत्वं कालस्य, चैतन्यपरिणामो जीवस्य । एवममूर्तानां विशेषगुणसंक्षेपाधिगमे लिङ्गम् ।
तत्रैककालमेव सकलद्रव्यसाधारणावगाहसंपादनमसर्वगतत्वादेव शेषद्रव्याणामसंभवदाकाशमधिगमयति । तथैकवारमेव गतिपरिणतसमस्तजीवपुद्गलानामालोकद्गमन
(हरिगीत ) आकाश का अवगाह धर्माधर्म के गमनागमन। स्थानकारणता कहे ये सभी जिनवरदेव ने||१३३|| उपयोग आतमराम का अर वर्तना गुण काल का।
है अमर्त द्रव्यों के गुणों का कथन यह संक्षेप में ||१३४|| आकाश का अवगाह, धर्मद्रव्य कागमनहेतुत्व और अधर्मद्रव्य कागुण स्थानकारणता है। कालद्रव्य का वर्तना और आत्मा का गुण उपयोग कहा गया है। इसप्रकार अमूर्तद्रव्यों के गुण संक्षेप में जानना चाहिए।
आचार्य अमृतचन्द्र इन गाथाओं के भाव को तत्त्वप्रदीपिका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं
“एकसाथ सभी पदार्थों के साधारण अवगाह का हेतुपना आकाशद्रव्य का विशेष गुण है। एक ही साथ सभी गमनपरिणामी जीव-पुद्गलों के गमन का हेतुपना धर्मद्रव्य का विशेष गुण है। एकहीसाथ सभीस्थानपरिणामीजीव-पुद्गलों के स्थिर होने का हेतुत्व अधर्मद्रव्य का विशेष गुण है। काल के अतिरिक्त शेष सभी द्रव्यों के प्रतिसमय में परिणमन का हेतुपना कालद्रव्य का विशेष गुण है और चैतन्यपरिणाम जीव का विशेष गुण है।
इसप्रकार अमूर्त द्रव्यों के विशेष गुणों का संक्षिप्त ज्ञान होने पर अमूर्त द्रव्यों को जानने के लिंग (चिह्न, साधन, लक्षण) प्राप्त होते हैं। तात्पर्य यह है कि इन विशेष गुणों द्वारा अमूर्त द्रव्यों का अस्तित्व ज्ञात होता है, सिद्ध होता है।
अब इसी बात को विशेष समझाते हैं - वहाँएक ही काल में समस्त द्रव्यों के साधारण अवगाह का संपादन अर्थात् हेतुपनेरूप लिंग आकाश को बतलाता है; क्योंकि शेष द्रव्यों के