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प्रवचनसार
वस्तुत: द्रव्य छह प्रकार के हैं - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इनमें जीव को छोड़कर शेष पाँच द्रव्यों को अजीव कहा जाता है; क्योंकि वे जीव नहीं हैं, उनमें जीवत्व नहीं है, चेतना नहीं है।
उन्हें जो अजीव नाम दिया गया है, वह जीव की ओर से है, जीव कीमुख्यतासे किये गये कथन की अपेक्षा से है; क्योंकि उन द्रव्यों के अपने-अपने स्वतंत्र नाम हैं और उनकी स्वतंत्र परिभाषायें भी हैं, जिनकी चर्चा आगे यथास्थान होगी।
प्रश्न - क्या अजीव नामक कोई स्वतंत्र द्रव्य नहीं है ?
उत्तर - जीव से भिन्न पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - इन पाँच द्रव्यों को छोड़कर इनसे पृथक् अजीव नाम का कोई स्वतंत्र द्रव्य नहीं है। जब हम किसी से पूछते हैं कि यहाँ जैनों के कितने घर हैं ? तो हमें उत्तर मिलता है कि १०० घर हैं। पर यदि हम यह पूछे कि अजैनों के कितने घर हैं तो यही कहा जायेगा, शेष सब अजैन ही तो हैं। ___ पर मेरा कहना यह है कि जब हम किसी से पूछे कि आप कौन हैं ? तो यह कहते हुए तो अनेक लोग मिल जावेंगे कि हम जैन हैं, वैष्णव हैं, हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं, सिख हैं, बौद्ध हैं; पर यह कोई न कहेगा कि हम अजैन हैं। तात्पर्य यह है कि अपने को कोई अजैन नहीं मानता, अजैन नाम से नहीं पुकारता और न वह अजैन कहलाना ही पसन्द करता है; क्योंकि उसका अजैन नाम तो अपने से भिन्न बताने के लिए हमने दिया है। यह तो नकारात्मक नाम है, वह इसे क्यों स्वीकार करेगा ?
इसीप्रकार के प्रश्न के उत्तर में क्या हम यह उत्तर देंगे कि हम अहिन्दु हैं, असिख हैं, अबौद्ध हैं ? यदि नहीं तो फिर वे लोग - ऐसा कैसे कह सकते हैं कि हम अजैन हैं ?
वस्तुत: बात यह है कि सकारात्मक (पॉजिटिव) रूप से अजैन कोई नहीं है; हम उन्हें अपने से भिन्न बताने के लिए नकारात्मक (नेगेटिव) भाषा का प्रयोग करके अजैन कहते हैं।
इसीप्रकार जीव से भिन्न पुद्गलादि सभी पदार्थों को अजीव कहा जाता है। प्रश्न - यदि ऐसी बात है तो फिर किसी को अजीवद्रव्य कहना तो ठीक नहीं है?
उत्तर - क्यों ? वस्तस्वरूप के प्रतिपादन के लिए यह एक महती आवश्यकता है। यदि हमें अपने से भिन्न पुद्गलादिसभी द्रव्यों कोएक नामसे कहना हो तो अजीवके अतिरिक्त और कौन-सा शब्द है कि जिसका प्रयोग किया जा सके।
वस्तुस्वरूप की स्पष्टता के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है।