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प्रवचनसार
कैसे हो सकता है?
मनुष्य देव नहीं है अथवा देव, मनुष्य या सिद्ध नहीं है - ऐसी स्थिति में वे अनन्य कैसे हो सकते हैं? ___ एकसाथ समागत ये दोनों गाथायें एकदम परस्पर विरुद्ध दिखाई देती हैं। एक कहती है कि वे अन्य-अन्य कैसे हो सकते हैं और दूसरी कहती है कि वे अनन्य कैसे हो सकते हैं ? _मूल बात यह है कि उक्त गाथाओं में सत्-उत्पाद में अनन्यपना और असत्-उत्पाद में अन्यपना सिद्ध किया गया है।
इन गाथाओं का भाव तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
"द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तियों को कभी न छोड़ता हुआद्रव्य सत् ही है, विद्यमान ही है। पर्यायभूताया व्यतिरेकव्यक्तेः प्रादुर्भावः तस्मिन्नपि द्रव्यत्वभूताया अन्वयशक्तेरप्रच्यवनात् द्रव्यमनन्यदेव । ततोऽनन्यत्वेन निश्चीयते द्रव्यस्य सदुत्पादः। __ तथाहि - जीवो द्रव्यं भवन्नारकतिर्यग्मनुष्यदेवसिद्धत्वानामन्यतमेन पर्यायेण द्रव्यस्य पर्यायदुर्ललितवृत्तित्वादवश्यमेव भविष्यति । स हि भूत्वा च तेन किं द्रव्यत्वभूतामन्वयशक्तिमुज्झति, नोज्झति । यदि नोज्झति कथमन्यो नाम स्यात्, येन प्रकटितत्रिकोटिसत्ताकः स एव नस्यात्।।११२।। ___ पर्याया हि पर्यायभूताया आत्मव्यतिरेकव्यक्ते: काल एव सत्त्वात्ततोऽन्यकालेषुभवन्त्यसन्त एव । यश्च पर्यायाणांद्रव्यत्वभूतयान्वयशक्त्यानुस्यूत: क्रमानुपातीस्वकाले प्रादुर्भाव: तस्मिन्न पर्यायभूताया आत्मव्यतिरेकव्यक्तेः पूर्वमसत्त्वात्पर्याया अन्य एव । तत: पर्यायाणामन्यत्वेन निश्चीयते पर्यायस्वरूपकर्तृकरणाधिकरणभूतत्वेन पर्यायेभ्योऽपृथग्भूतस्य द्रव्यस्या सदुत्पादः।
तथाहि - न हि मनुजस्त्रिदशो वा सिद्धो वा स्यात् न हि त्रिदशो मनुजो वा सिद्धो वा स्यात् । एवमसन् कथमनन्यो नाम स्यात् येनान्य एव न स्यात् । येन च निष्पद्यमानमनुजादिपर्यायं जायमानवलयादिविकारं काञ्चनमिव जीवद्रव्यमपि प्रतिपदमन्यन्न स्यात्।।११३॥ द्रव्य के जोपर्यायभूत व्यतिरेक व्यक्तित्व का उत्पाद होता है; उसमें भीद्रव्यत्वभूत अन्वयशक्ति अच्युत रहती है; इसकारण द्रव्य अनन्य ही है। इसलिए अनन्यपने से द्रव्य का सत् उत्पाद निश्चित होता है।
अब इसी बात को विशेष स्पष्ट करते हैं - जीव, द्रव्य होने से और द्रव्य, पर्यायों में वर्तने से जीव; नारकत्व, तिर्यंचत्व, मनुष्यत्व, देवत्व और सिद्धत्व में से किसीएक पर्याय में अवश्यमेव परिणमित होगा; परन्तु वह जीव उस पर्यायरूप होकर भी द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्ति को छोड़ता है क्या? यदिनहीं छोड़तातोवह अन्य कैसे हो सकता है कि जिससे त्रिकोटिसत्ता (त्रैकालिकअस्तित्व) जिसके प्रगट है - ऐसा वह जीव वही जीवन हो?